नई दिल्ली. भारत में मछली उत्पादन बड़ी मात्रा में होता है. यही वजह है कि हिंदुस्तान दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश बन गया है. ये उत्पादन वैश्विक मछली उत्पादन में आठ फीसदी का योगदान देता है. इतना ही नहीं जलीय कृषि उत्पादन में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है. अगर 2021-22 के आंकड़ों पर नजर डालें तो मछली का उत्पादन 16.24 मिलियन टन है, जिसमें 4.12 मिलियन टन समुद्री मछली उत्पादन और जलीय कृषि से 12.12 मिलियन टन शामिल है. मछली उत्पादन बढ़े और मछली पालकों का इस ओर रुझान बढ़े इसके लिए भारत सरकार की ओर से प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना को शुरू किया गया है, इससे छोटे मछुआरों को प्रोत्साहन मिलेगा. रिपोर्ट बताती है जब से इस योजना को शुरू किया गया है, तब से मछली उत्पादन भी काफी बढ़ गया है.
मछली पालन आमतौर पर तालाब में किया जाता है. मछली पालक गहरे तालाब खुदवाकर उसमें मछली पलते हैं और फिर अपना व्यापार करते हैं. हालांकि अब साइंस की मदद से फिश फार्मिंग बड़ी आसान हो गई है, जो कोई भी अपने घर पर मछली पालन करना चाहता है या खेत में पालन चाहता है तो वह नई टेक्नोलॉजी की मदद से ऐसा कर सकता है. इतना ही नहीं अगर आप खेत में या घर पर मछली पालन करते हैं तो सरकार आपको 60% तक सब्सिडी देती है. मछली पालन को लेकर सरकार भी काम कर रही हैं, जिससे मछली उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी हो रही है.
इस योजना कीवजह से भी बढ़ा मछली उत्पादन
हिंदुस्तान दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश बन गया है. ये उत्पादन वैश्विक मछली उत्पादन में आठ फीसदी का योगदान देता है। इतना ही नहीं जलीय कृषि उत्पादन में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है. अगर 2021-22 के आंकड़ों पर नजर डालें तो मछली का उत्पादन 16.24 मिलियन टन है, जिसमें 4.12 मिलियन टन समुद्री मछली उत्पादन और जलीय कृषि से 12.12 मिलियन टन शामिल है. प्रधानमंत्री मत्स्य से संपदा योजना के तहत सरकार ने बैकयार्ड सर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम के जरिए मछली पालन की योजना लागू किया है. इस तरह सरकार महिलाओं, अनुसूचित जातियों और जनजाति को 60 फीसदी सब्सिडी दे रही है. जबकि आम जनता को 40 फीसदी सब्सिडी देने का नियम है. अब बात की जाए कैसे घर पर मछली पालन किया जा सकता है.
मछलियों में पनप रहीं बीमारियां बन रही चुनौती
विकास के साथ-साथ मछुआरों को कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है. खासकर छोटे स्तर पर मछली पालन करने वाले किसानों को अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. आए दिन मछलियों में तरह-तरह की बीमारियां होती रहती हैं जिससे मछुआरों को नुकसान उठाना पड़ता है. जानकारी के अभाव में ना तो वो बीमारी की पहचान कर पाते हैं और ना ही उसका उपाय कर पाते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं मछलियों में रोग के 7 लक्षण और इलाज के 7 आसान उपाय.
मछलियों में ये लग जाते हैं रोग
–मछलियों में लगने वाले रोग के 7 लक्षण .
–मछली की विक्त तैराकी .
–शरीर का सूजना .
–मछलियों की हलचल में सुस्ती आना .
–पंखों का सड़ना .
–शरीर पर दाग पड़ जाना .
–मछली का जल के उपरी स्तर पर आ जाना .
–चमड़ी का ढिला हो जाना .
इन रोग का आसान तरीकों से कर सकते हैं इलाज
–बीमार मछलियों को तालाब में न छोड़ें और हेल्थी बीज का इस्तेमाल करें, जिससे मछली बीमार न हों.
–एक साल में एक बार तालाब को जरूर सुखाएं, दरार पड़ जाने तक .
–पशु पक्षियों, घोंघा, सांप, इत्यादि को तालाब में आने से जरूर रोकें .
–समय-समय पर मछली के विकास कि जांच करना चाहिए .
–तालाब में दवा का प्रयोग बिना विशेषज्ञों की राय के न डालें .
–अगर तालाब नही सूखता है, तो ब्लीचिंग पाउडर (300-500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) या चूना (300-500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) का इस्तेमाल करें उसे साफ करने के लिए.
–मछली के तालाब में सही मात्रा में खाद का प्रयोग करना चाहिए .
कौन सी मछली पालन में है लाभदायक है
अगर आप मछली पालन करने की सोच रहे हैं तो तालाब के पानी को साफ रखना जरूरी है, जिससे मछलियों को बराबर मात्रा में ऑक्सीजन मिल सके। अच्छी कमाई करने के लिए मछली पालक रोहू, कतला, मृगल, ग्रास कार्प, कॉमन कार्प, सिल्वर कार्प जैसी मछलियां पाल सकते हैं.
मछली पालन में कितना खर्च आता है
सरकार मछली पालन के लिए लोन भी देती है. इसमें भारी छूट दी जाती है. मछली पालन के लिए एक हेक्टेयर तालाब के निर्माण में करीब 3 से 5 लाख रुपये की लागत आती है. इसमें केंद्र सरकार कुल राशि का 50 प्रतिशत और राज्य सरकार 25 प्रतिशत अनुदान देती है. शेष 25 प्रतिशत का भुगतान मछली पालक को करना हो। इस प्रकार के तालाबों के लिए भी केंद्र और राज्य सरकारें खर्च के अनुसार अनुदान देती हैं. जिसमें से 25 प्रतिशत मछली पालकों को देना होता है.
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