नई दिल्ली. एक तरफ देश में सूखे चारे की 23.4ः कमी है. वहीं हरे चारे की 11.24 प्रतिशत कमी है, तो दूसरी ओर जब धान की कटाई होती है तो किसान धान की पराली को खेत में जला देते हैं. इससे न सिर्फ वायु प्रदूषण होता है, बल्कि यह पर्यावरण का तापमान भी बढ़ा देता है. क्या आपको पता है कि इस परली का इस्तेमाल करके आप पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ा सकते हैं? इससे आप पशुओं को चारे में दें, जिससे पशुओं का दूध उत्पादन भी बढ़ेगा और पराली न जलाने से पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा.
यहां आपको ये भी बता दें कि धान की पराली में पोषक तत्वों की मात्रा नाम मात्र ही होती है. धान के भूसे में शुष्क पदार्थ की मात्रा 90ः और नामी 10ः होती है. धान के भूसे में कच्चा प्रोटीन केवल तीन प्रतिशत होता है. जबकि इसमें फाइबर की मात्रा 30 फीसदी तक होती है. धान के भूसे में 17 फीसदी तक सिलिका भी पाया जाता है. इसमें आधा प्रतिशत कैल्शियम और 01ः फास्फोरस भी होता है. धान के भूसे की पाचन शक्ति 30 से 50 फीसदी होती है.
4 किलोग्राम यूरिया डालें: पशुओं को केवल धान के भूसे पर निर्भर रखा जाएगा तो उनकी पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना संभव नहीं है. गौशालाओं में भी बेसहारा पशुओं का पालन पोषण धान की पराली के आधार पर किया जा रहा है. धान का भूसा उनका पेट तो भर सकता है लेकिन उन्हें जरूरी पोषण नहीं दे सकता. भले ही पशु दूध न दे रहो. ऐसी स्थिति में केवल धान की भूसे से ही दैनिक पोषण की समस्या की आवश्यकता पूरी नहीं हो सकती है इसके लिए धान के भूसे की आवश्यकता और पाचन शक्ति बढ़ाने के साथ फ्यूजेरियम कवक कटक से छुटकारा पाने के लिए धान के भूसे में यूरिया अमोनिया उपचार की बाद खिलाना चाहिए. धान की पुआल को यूरिया से उपचारित करने के लिए 100 किलोग्राम धान की पुआल के लिए 33 लीटर पानी और 4 किलोग्राम यूरिया उर्वरक का की आवश्यकता होती है.
इस तरह करें उपचारित: उपचार के लिए 33 लीटर पानी में 4 किलोग्राम यूरिया का घोल बनाकर पराली पर छिड़क दें. तथा पराली को पैरों से दबाकर बीच में मौजूद हवा को हटा दें. उपचारित धान की पराली को पॉलिथीन से ढक्कन 21 दिन के लिए रख दें. 21 दिन के बाद यूरिया, अमोनिया में परिवर्तित हो जाएगी, जो धान की पराली को उपचारित कर उसका पोषण बढ़ाने के साथ-साथ पाचन शक्ति को भी बढ़ाएगी. तथा फंगस के बीजाणुओं को भी नष्ट कर देगी. इससे न सिर्फ पशुओं का पेट भर सकेगा, बल्कि पशुओं को जरूरी पोषक तत्व मिलेगा. इस पशुओं का दूध उत्पादन भी बढ़ेगा.
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