नई दिल्ली. भेड़-बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जो ग्रामीण परिवारों के सामाजिक-आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. बकरी के मांस और दूध के रूप में बहु-आयामी उपयोग के कारण इसे गरीब आदमी की गाय के रूप में जाना जाता है. हालांकि भेड़-बकरियों के इस व्यवसाय को इसमें फैलने वाले मुंहपका और खुरपका यानि पीपीआर रोग से बड़ा खतरा होता है. पीपीआर रोग इतना खतरनाक होता है कि ये भेड़ व बकरियों में सर्दी व गर्मी दोनों में फैलता है और एक ही दिन में जानवर के शरीर में मौजूद खून को पानी बना देता है.
इससे बीमार भेड़-बकरी के आंख, नाक और मुंह से पानी टपकनता है और मुंह नाक में छाले हो जाते है, जो कि फैलकर पाचन तंत्र को निष्क्रिय कर देते हैं. वक्त पर सही उपचार न मिलने की स्थिति में जानवरों की मौत हो जाती है. जिसका सीधा नुकसान पशुपालकों को उठाना पड़ता है.
टीका लगवाकर सुरक्षित करें जानवर
पीपीआर रोग से भेड़ बकरियों को बचाने के लिए उसका टीकाकरण महत्वपूर्ण उपाय में से एक है. इसके लिए कई पीपीआर टीके उपलब्ध है और इन्हें संवेदनशील जानवरों को लगाया जाता है. वैक्सीनेशन कराकर भेड़ व बकरियों को सुरक्षित किया जा सकता है. इसके अलावा रोग के फैलने से रोकने के लिए संक्रमित बकरियों को स्वस्थ जानवरों से अलग कर देना चाहिए. इनकी रिकवरी के लिए और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी दिया जाना चाहिए.
3 महीने की उम्र में लगवाएं टीका
पीपीआर रोग जिसे बकरी का प्लेग भी कहते हैं, 3 महीने की उम्र पर इसके लिए वैक्सीन लगाई जाती है. बूस्टर की जरूरत नहीं होती है. 3 साल की उम्र पर दोबारा लगवा सकते हैं. इन्टेरोटोक्समिया- 3 से 4 महीने की उम्र पर लगवा सकते हैं. अगर चाहें तो बूस्टर डोज पहले टीके के 3 से 4 हफ्ते बाद लगवा सकते हैं हर साल एक महीने के अंतर पर दो बार लगवाएं.
फ्री में होता है वैक्सीनेशन
बताते चलें कि पशुपालन और डेयरी विभाग भेड़ व बकरियों को बीमारी से बचने के लिए फ्री वैक्सीनेशन शिविर लगाती रहती है. हर साल 20 करोड़ एनिमल्स को वैक्सीनेट किया जाता है. विभाग पशुपालकों से आह्वान करता है कि वह इस मूवमेंट से जुड़कर अपने जानवरों को बचा सकते हैं और अपना पैसा भी बचा सकते हैं.
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