नई दिल्ली. देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी बकरे और बकरियों के नस्ल सुधार के लिए जमनापारी बकरियों का इस्तेमाल किया खूब किया जाता है. जिसके चलते देश के अलग-अलग हिस्सों के अलावा विदेशों में भी नस्ल सुधार के लिए जमनापारी नस्ल के बकरे और बकरियां भेजा जाता है. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्था न (सीआईआरजी), मथुरा के साइंटिस्ट की मानें तो दूध, मीट, बच्चा देने और अपने बॉडी साइज के चलते जमनापारी के नस्ल के बकरे और बकरियां सबसे अच्छे और खास होते हैं. यही वजह है कि जब जिस देश को इसकी जरूरत होती है तो भारत से जमनापरी नस्ल के बकरों की डिमांड करते हैं और फिर उन्हें उपलब्ध भी कराया जाता है.
इन देशों में है खासी डिमांड
खासतौर पर नेपाल, भूटान, इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया जैसे देश में इस नस्ल के बकरे की खूब डिमांड होती है. इसमें भी खासतौर पर सफेद रंग में पाए जाने वाले यह बकरे सामान्य से ज्यादा लम्बे होने के कारण डिमांडेड होते हैं. वहीं ये देखने में भी खूबसूरत होते हैं. जबकि सीआईआरजी भी इस नस्ल पर काम करता चला आ रहा है. यही काम की वजह से संस्थान को पुरस्कार भी मिल चुका है. बताते चलें कि यह नस्ल यूपी के इटावा शहर की है. केन्द्रीय पशुपालन मंत्रालय की एक रिपोर्ट पर गौर करें तो जमनापरी बकरियां पहले नंबर पर यूपी है. यहां 7.54 लाख इसकी तादाद है. जबकि दूसरे पर मध्य प्रदेश 5.66 लाख, तीसरे पर बिहार 3.21 लाख, चौथे पर राजस्थान 3.09 लाख और पांचवें नंबर पर पश्चिम बंगाल में 1.25 लाख की तादाद है. गौरतलब है कि देश में दूध देने वाली कुल बकरियों की संख्या 7.5 लाख है.
क्या है जमनापारी बकरी-बकरों की खासियत
सीआईआरजी के सीनियर साइंटिस्ट और जमनापरी नस्ल के विशेषज्ञ डॉ. एमके सिंह कहते हैं कि दूसरे देश भारत से जमनापरी नस्ल के बकरों की मांग वहां कि बकरियों की नस्ल सुधार के लिए करते हैं. दरअसल, जमनापरी नस्ल की बकरी रोजाना 4 से 5 लीटर तक दूध देती है. जबकि दुग्ध काल 175 से 200 दिन का होता है. इतने समय में ये बकरी 500 लीटर तक दूध देती है. इस नस्ल में दो बच्चे देने की दर भी 50 फीसद तक है. इसका वजन रोजाना 120 से 125 ग्राम तक बढ़ जाता है. जबकि शारीरिक बनावट और सफेद रंग का होने के चलते ये खूबसूरत भी नजर आते हैं. यही वजह है कि बकरीद पर भी इनकी खासी डिमांड रहती है.
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