नई दिल्ली. राजस्थान में जैसलमेर के सीमावर्ती क्षेत्र में ओरण, चारागाहों की जमीनों को राजस्थान सरकार सोलर विंड कंपनियों को आवंटित करने में लगी हैं, जिसका विरोध जैसलमेन, बीकानेर, बाड़मेर आदि जिलों के लोग कर रहे हैं. हाईटेंशन लाइनों से टकराकर हर रोज पक्षी मर रहे हैं तो सोलर विंड से भी पक्षी टकराकर हर रोज उनकी जीवन लीला समाप्त हो रही है. लगातार ले रही पक्षियों की जान की वजह से इस हाइटेशन लाइन को लोगों ने ‘शिकारी तार’ तक कहना शुरू कर दिया है. अब सातवां गांव की सरहद में देगराय ओरण के समीप हिमालियन ग्रैफान की विंड से टकराकर मौत हो गई. ऐसा हर रोज हो रहा है. लगातार मांग के बाद भी सरकार लोगों की आवाज सुनने को तैयार नहीं. लोगों का कहना है कि सरकार ने घरेलू लाइनों को तो रोक दिया लेकिन कंपनियों की लाइनों को डालने के लिए अनुमति मिल जाती है. बता दें कि इस बार हिमालियन ग्रैफान बड़ी तादाद में देगराय ओरण में आए हैं लेकिन जब वे अपने वतन वापस जाते वक्त अपनी जान को गंवा रहे हैं. इसे लेकर लोगों में बहुत गुस्सा है.
राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर में जल संकट से लोग ही नहीं पशु-पक्ष भी जूझ रहे हैं. ऊपर से बिजली के तार हर रोज पक्षियों की मौत का सबब बने हुए हैं. लगातार ले रही पक्षियों की जान की वजह से इस हाइटेशन लाइन को लोगों ने ‘शिकारी तार’ तक कहना शुरू कर दिया है. अब सातवां गांव की सरहद में देगराय ओरण के समीप हिमालियन ग्रैफान की मौत विंड फेन से टकराकर मौत हो रही है. सातवां गांव की सरहद में देगराय ओरण के समीप हिमालियन ग्रैफान की विंड से टकरा खत्म हो गया. ऐसा एक दिन नहीं जबकि हर रोज ऐसा हो रहा है. टीम ओरण के संस्थापक सुमेर सिंह भाटी का कहना है कि जब इन जिलों के लोग घरेलू कनेक्शन के लिए लाइनों की मांग करते हैं तो सरकार देती नहीं लेकिन सोलर और विंड कंपनियों को लाइनों का जाल बिछाने के लिए फौरन हरी झंडी दे देते हें. उन्होंने कहा कि हिमालियन पक्षी एक दिन नहीं बल्कि हर रोज मर रहे हैं. जब ये पक्षी अपने वतन जाते हैं तो इन विंड फेन से टकराकर मर जाते हैं.
हिमालियन ग्रैफान विंड से टकरा हो रहे खत्म
शुक्रवार सुबह सातवां गांव की सरहद में देगराय ओरण के समीप हिमालियन ग्रैफान की विंड से टकरा खत्म हो गया. सुमेर सिंह भाटी ने बताया कि कई बार विभाग को सूचित कर दिया गया है लेकिन वाइल्डलाइफ पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. हाईटेंशन लाइनों से हमेशा खत्म हो रहे हैं पक्षी गोडावन, गिद्द, कुर्जा बाज अन्य पक्षी निरंतर मर रहे हैं. इन पक्षियों के पालन पर अरबों रुपये खर्च हो रहे हैं लेकिन विभाग इस ओर ध्यान नहीं दे रहा. अगर ऐसा ही लगातार चलता रहा तो यह पक्षी विलुप्त होकर खत्म हो जाएंगे.
सर्वे में हो चुका है चौकाने वाला खुलासा
साल 2020 में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की ओर से जैसलमेर जिले के करीब 4000 वर्ग किमी क्षेत्र में कराए गए सर्वे के मुताबिक केवल जैसलमेर जिले में 87 हजार 966 पक्षियों की बिजली के तारों की चपेट में आने से मौत हो गई. राजस्थान क राज्यीय पक्षी गोडावण की जिंदगी भी खतरे में है. जैसलमेर के डेजर्ट नेशनल पार्क (राष्ट्रीय मरू उद्यान) इलाके के लगते क्षेत्र में एक साल में इन पक्षियों की मौत हुई हैं. इन शिकारी तारों का जाल रेगिस्तान में 328 प्रजाति के पक्षियों को मौत के घाट उतार रहा है. इसमें 20 वे पक्षी भी है जो सात समंदर पार से बाड़मेर आकर अना बसेरा कर रहे है. कुरजां पक्षी की उड़ान के लिए भी अब य तार बाधा बने हुए हैं.
विश्व में 150 तो अकेले जैसलमेर में 120 गोडावन पक्षी
राजस्थान का राज्यपक्षी गोडावण है. दुनिया में इनकी कुल संख्या महज 150 के करीब बताई जा रही है, जिसमें से अकेले जैसलमेर में ही 120 के आसपास है. ये संख्या भी 2018 की गणना के अनुसार बताई जा रही है. अब दुनिया में सिर्फ जैसलमेर ही है, जहां यह पक्षी प्रजनन कर रहा है. मतलब साफ है कि अगर संख्या भी बढ़ेगी तो भी सिर्फ जैसलमेर में ही. लोगों का मानना है कि हमारे राज्य के राज्यपक्षी को अब केवल जैसलमेर ही जिंदा रखे हुए है. बता दें कि राजस्थान की तत्कालीन सरकार ने 1981 में इसे अपना राज्यपक्षी घोषित किया था.
ये था सर्वोच्च न्यायालय का आदेश
साल 2020 में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की ओर से जैसलमेर जिले के करीब 4000 वर्ग किमी क्षेत्र में कराए गए सर्वे के मुताबिक केवल जैसलमेर जिले में 87 हजार 966 पक्षियों की बिजली के तारों से टकराने और करंट की चपेट में आने से मौत हुई. इसके बाद ये मामला देश की सर्वोच्च न्यायलय में पहुंच गया. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को आदेश दिया था कि इन तारों को जमीन में दबाया जाए ताकि इन दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों की जान बचाई जा सके. पांचों बिजली कंपनियों को इसके लिए पाबंद भी किया गया, लेकिन बिजली कंपनियों ने इसको लेकर अभी तक गंभीरता नहीं दिखाई है. कंपनियों की ओर से उच्चतम न्यायालय में बिजली लाइनों को भूमिगत करने का खर्चा ज्यादा आने क तर्क दिया गया. इस पर एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल-2021 के आदेश को याद दिलाते हुए कहा था कि हाईटेंशन लाइनों को जमीन में गाड़ने की कार्रर्वा को गंभीरता से लिया जाए.
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