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Animal Husbandry: पशुओं में कैसे करें FMD की पहचान, किस तरह बीमारी पर पाया जा सकता है काबू

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बाड़े में बंधी भैंस. livestockanimalnews

नई दिल्ली. भेड़-बकरी और गाय-भैंस में खुरपका, मुंहपका एफएमडी बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए देशभर में टीकाकरण अभियान बड़े जोर-जोर से चल रहा है. इसके तहत हर साल करीब 50 करोड़ पशुओं को एफएमडी की वैक्सीन लगाई जाती है. कई राज्यों में तो चौथे चरण का टीकाकरण चल रहा है. हाल ही में पेश हुए बजट में भी इसके बारे में चर्चा हुई थी और एफएमडी के टीकाकरण को लेकर एक बड़ी रकम भी इसमें दी गई थी. क्योंकि एनिमल एक्सपोर्ट का मानना है की बीमारी की वजह से देश का डेरी प्रोडक्ट और मीट प्रोडक्ट आगे नहीं बढ़ पा रहा है.

इस वजह से इस बीमारी को जड़ से खत्म करना बेहद जरूरी है. एनिमल एक्सपर्ट के मुताबिक एफएमडी को लेकर समय-समय पर एडवाइजरी भी जारी होती है. बावजूद इसके बहुत सारे पशुपालक टीका नहीं लगवाते हैं. आज भी कई तरह की भ्रांतियां से पशुपालकों में देखने को मिलती है. जबकि इस बीमारी का एक मात्र इलाज टीकाकरण ही है.

क्या है इस बीमारी के लक्षण
एनिमल एक्सपर्ट निवेश शर्मा कहते हैं कि एफएमडी पीड़ित पशु जैसे गाय-भैंस, भेड़-बकरी के लक्षण यह है कि उन्हें 104 से 106 एफ तक तेज बुखार होता है. भूख कम हो जाती है. पशु स्वस्थ रहने लगते हैं. मुंह से बहुत सारी लार टपकने लगता है. मुंह में फफोले हो जाते हैं. खासतौर पर जीभ और मसूड़े पर फफोले बहुत ज्यादा हो जाते हैं. पशुओं के पैर में खुर के बीच घाव हो जाता है. जो अलसर होता है. जबकि ग्रामीण पशु का गर्भपात हो जाता है. थन में सूजन और पशुओं में बांझपन की बीमारी हो जाती है.

क्या है बीमारी फैलने का कारण
एक्सपर्ट कहते हैं कि पशुओं में दूषित चारा, दूषित पानी से एफएमडी रोग जल्दी फैलता है. बारिश के दौरान खासतौर पशु खुले में चरने के लिए दूसरी चारा पानी खा पी लेते हैं. खुले में कुछ पड़ी सड़ी गली चीज भी खा लेते हैं. इसके चलते फार्म पर आए नए पशुओं को भी ये बीमारी लग जाती है. एफएमडी की बीमारी पीड़ित पशुओं के साथ रहने से भी हो जाती है.

पशुओं की बीमारी से कैसे बचाएं
पशुओं में एफएमडी की रोकथाम करना बहुत आसान है. इसमें कोई पैसा नहीं खर्च होता है. सबसे पहले तो अपने पशु का रजिस्ट्रेशन करें और उसके बाद कान में ईयर टैग डलवाएं. किसी पशु स्वास्थ्यप्ले केंद्र पर साल में दो बार फ्री लगने वाले एफएमडी के तक को लगवाएं. टीके लगवाने के बाद इस बात का खासकर ख्याल रखें कि लगभग 10 से 15 दिन में पशु प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है. इसलिए तब तक पशु का खास ख्याल रखें. बरसात के दौरान पशु को बैठने और खड़े होने की जगह की साफ सफाई रखें.

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