नई दिल्ली. लंपी बीमारी गाय-भैंस में होने वाले एक संक्रामक रोग है. आमतौर पर राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड राज्यों में मवेशियों में लंपी बीमारी का संक्रमण केस ज्यादा देखने को मिलते हैं. इसके चलते भारी तादाद में पशुओं की बीमारी में आ जाने से मौत भी हो जाती है. इस बीमारी से हर उम्र और नस्ल वाले पशु प्रभावित होते हैं. हालांकि विशेष तौर पर कम उम्र के दुधारू मवेशी ज्यादा प्रभावित होते हैं. इस रोग से पशुधन उत्पादन में भारी कमी आती है. जिससे पशुपालक को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है.
एक्सपर्ट कहते हैं कि पशुओं को लंपी रोग से बचाना बेहद ही जरूरी होता है. यह एक बार फैल जाता है तो इससे पशुओं की मौत तक हो जाती है. पशुओं में लंपी बीमारी यानी एलएसडी की रोकथाम के लिए टीकाकरण सबसे अच्छा तरीका है. इंडियन इम्यूनोलॉजिकल वेस्टर बायो साइंस द्वारा निर्मित गॉटपॉक्स टीका पशुओं को बीमारी से बचने के लिए बेहद कारगर साबित हुआ है. इस टीका को 3 से 5 मिली लीटर मात्रा में चमड़े में दिए जाने से 1 वर्ष तक पशुओं की इस बीमारी से हिफाजत की जा सकती है.
लंपी बीमारी में क्या करें
जब यह बीमारी हो जाए तो तुरंत निकटतम सरकारी पशु चिकित्सा अधिकारी को सूचित करें.
प्रभावित पशुओं को हेल्दी पशुओं से अलग कर दें.
प्रभावित पशुओं की आवाजाही को रोक दें.
पशुओं को खून चूसने वाले कीट के काटने से बचाने के लिए शरीर पर कीटनाशक निवारक का प्रयोग करें.
स्वस्थ पशुओं को दान चार देने से दूध निकालने के बाद रोग ग्रसित पशुओं को देखभाल करें.
बीमारी को फैलने से बचाने के लिए परिवेश व पशु खलियान की फिनाएल से 2% 15 मिनट, सोडियम हाइपोक्लोराइट 2 से 3% आयोडीन योगिकों 1:33, अमोनिया योगिको को 0.5% और इथर 20% इत्यादि का छिड़काव करना बेहतर होता है.
बीमारी फैलने पर पशु मेला में प्रदर्शनी पर रोक लगा देनी चाहिए.
क्या नहीं करना चाहिए
सामूहिक चराई के लिए अपने पशुओं को नहीं भेजें.
पशुओं को पानी पीने के लिए आम स्रोत जैसे कि तालाब, धाराओं, नदियों का सीधे प्रयोग नहीं करना चाहिए. इस बीमारी फैलने का खतरा बढ़ जाता है.
प्रभावित क्षेत्रों से पशुओं की खरीदी न करें.
मृत पशुओं के समूह को खुले में न फेकें.
लंपी रोग का बैक्टीरिया इंसानों को प्रभावित नहीं करता है. रोगी पशुओं को दूध को उबालकर पीने या रोगी पशुओं के संपर्क में आने से इंसानों में रोग फैलने की कोई आशंका नहीं है.
Leave a comment