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Animal Husbandry: गर्भकाल के दौरान मुर्राह भैंस का किस तरह रखें ख्याल, इन 8 प्वाइंट्स में पढ़ें

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प्रतीकात्मक फोटो:

नई दिल्ली. हरियाणा की मुर्राह भैंस पूरे देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बेहतरीन उत्पादन क्षमता के लिए जानी-पहचानी जाती हैं. डेयरी एक्सपर्ट कहते हैं कि अगर इस नस्ल की भैंसों को सही तरह से आहार मिनरल मिक्चर दिया जाये तो इनकी प्रजनन क्षमता और बेहतर की जा सकती है. भैंसों के गर्भाकाल का समय 10 महीने दिन का है. इसके गर्भकाल का आखिरी तीन महीना और प्रसव काल की अवधि खतरों से भरी रहती है. बता दें कि इनके ब्याने का समय ज्यादातर जुलाई से दिसम्बर तक होता है. इसलिए पशुपालकों को गाभिन भैंस की गर्भाकाल व प्रसव काल में आवश्यक देखमाल की जानकारी होना बेहद ही जरूरी है. ताकि सम्भावित बीमारियों के जोखिम को टाला जा सके.

एक्सपर्ट के मुताबिक गाभिन पशुओं खासकर ज्यादा दूध देने वाली मुर्राह भैंसों में इस ड्यूरेशन के दौरान कई बीमारियां होती हैं. जिनमें से मुख्य बीमारियों जैसे गर्भाश्य का बाहर निकलना, गर्भाश्य में बच्चे की अवस्था का बिगड़ जाना, कैल्शियम की कमी, प्रसव में दिक्कतें, जेर का रुकना, थनैला आदि. इन बीमारियों को टालने के लिए ब्याने वाले पशु का विशेष प्रबन्धन करना बहुत जरूरी है, जिसकी जानकारी आपको दी जा रही है. गर्भकाल (Period Of Pregnancy) का समय भैंसों में लगभग 310 दिन का ओर गायों में लगभग 280 दिन का होता है. गर्भावस्था में पशु की उचित देखभाल का प्रभाव बच्चे व भैंस के स्वास्थ्य तथा उसके दूध उत्पादन पर भी पड़ता है.

किन बातों का रखना चाहिए ध्यान

  1. पशु के आहार में कैल्शियम, फास्फोरस और हरे चारे की पर्याप्त मात्रा रखनी चाहिए ताकि उसे जरूरी तत्व मिल सकें और इसके साथ-साथ कब्ज से निजात मिल जाए.
  2. पशुओं को पीने के लिए स्वच्छ व ताजा पानी देना चाहिए.
  3. गर्मी के मौसम में पशु को 2-3 बार नहलाना चाहिए और तेज धूप से बचाना चाहिए.
  4. इस अवस्था में पशु को दौड़ने या अधिक चलने नहीं देना चाहिए. इससे दिक्कतें हो सकती हैं.
  5. पशु के बांधने की जगह पर रेत व मिट्टी डालकर उसके पीछे वाले सिरे को बैठने के समय ऊंचा रखने की व्यवस्था रखनी चाहिए तथा फर्श चिकना नहीं होना चाहिए.
  6. पशु का शरीर ढीला पड़ जाता है और तरल द्रव्य आने से पिछले हिस्से पर गोबर/ पेशाब लगने से संक्रमण न हो इसलिए साफ पानी से दिन में दो बार धोना चाहिए.
  7. ब्याने से पहले पशु का हवाना भारी हो जाता है और बैठते समय उस पर दबाव पड़ता है. इसलिए पशु के बैठने की जगह सख्त व चुभने वाली नहीं होनी चाहिए.
  8. गाभिन पशुओं को अन्य पशुओं से लड़ने से बचाना चाहिए.
  9. गाभिन पशु से दूध का दोहन ब्यांत के दो माह पूर्व बन्द कर देना चाहिए.

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