नई दिल्ली. यह बात बिल्कुल सच है कि देशभर में संक्रामक रोगों की वजह से हर साल बड़ी संख्या में पशुओं की मौत हो जाती है. ज्यादातर पशुओं की मौत बीमारी के शिकार होने की वजह से होती है. इसके अलावा उनका दूध उत्पादन कम हो जाता है, जिससे पशुपालक को नुकसान उठाना पड़ता है. पशु बीमार होता है और पशुपालक समझ नहीं पाता. बाद में जब पता चलता है तब तक बीमारी बढ़ जाती है और इसके चलते उनकी मौत हो जाती है. लिहाजा पशुपालकों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
पशु विशेषज्ञों का कहना है की प्रमुख संक्रामक बीमारी के उपचार की अपेक्षा टीकाकरण सबसे सस्ता और कारगर उपाय होता है. रोग हो जाने पर बीमार पशु को अलग रखना चाहिए. उपचार देने में जरा सी भी देरी नहीं होनी चाहिए. जबकि रोग ग्रसित पशुओं को धुएं नहीं देना चाहिए. संक्रमित पशुओं को खुले स्थान पर रखना चाहिए. जिससे कि दूसरे पशुओं में संक्रमण न फैले. ऐसा करेंगे तो पशुओं को बीमार होने और पशु पालकों को नुकसान होने से बचाया जा सकता है.
भेड़-बकरियों का ऐसे रखें ख्याल
भेड़-बकरी में भी अनेक तरह के रोग होते हैं. जिसके कारण पशु पालकों का आर्थिक नुकसान होता है. कई बार अन्य रोग ग्रस्त पशुओं से भी दूसरे स्वस्थ पशुओं में यह रोग फैल जाता है. ऐसे में पशुपालक को साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. खास तौर पर भेड़ बकरियां में पोषण की कमी न होने देना चाहिए. एक स्थान पर अधिक संख्या भेड़ बकरियों के चरने से न केवल घास समाप्त हो जाती है, बल्कि उनके मलमूत्र से चारागाह भी दूषित होता है. जिस वजह से परजीवियों का संक्रमण बढ़ जाता है, जो दस्त और अन्य रोगों को जन्म देते हैं.
बीमार होने की पहचान इस तरह करें
पशु की गति चल व्यवहार तथा हाव-भाव में परिवर्तन हो जाता है. वहीं चारा ना खाना भी उनके बीमार होने की पहचान है. जुगाली न करना अन्य पशुओं से अलग रहना भी बीमारी के लक्षण हैं. जबकि दूध उत्पादन में गिरावट आ जाती है, आंखों से कीचड़ आता है. मदचक्र समय पर नहीं आता है. लंगड़ा कर चलते हैं. आंख का नाक मुंह से द्रव्यों का बहाव होता है. यदि इस तर का कोई लक्षण दिखाई दे तो तुरंत समझ जाना चाहिए कि पशु बीमार हो गए हैं. वक्त रहते इलाज हो जाने पर उनकी बीमारी ठीक की जा सकती है.
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