नई दिल्ली. एक ओर सरकार पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए तमाम कोशिशें कर रही है तो दूसरी ओर पानी की किल्लत की वजह से महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले में त्राहीमाम मचा हुआ है. हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि आम इंसानों के साथ-साथ पशु बूंद-बूंद पानी को तरस गए हैं और इस वजह से पशुओं को बेचना पड़ रहा है. किसान पशुओं को औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर हो रहे हैं. बताया जा रहा है कि जब लोगों के पीने के लिए ही पानी नहीं है तो फिर लोग जानवरों को कहां से पानी पिलाएंगे.
ऐसी स्थिति में जानवर प्यासे न मर जाएं और उनके मरने से किसानों को और ज्यादा नुकसान न सहना पड़े, इसलिए उन्हें बेचने का ही विकल्प किसानों के सामने है. बताया ये भी जा रहा है कि यहा सूखे की ऐसी स्थिति हो गई है कि जानवरों को चारा पानी कुछ नहीं मिल पा रहा है. इस वजह से किसान बेहद ही परेशान हैं.
4 किलोमीटर दूर से ला रहे पानी
जानकारी के लिए बता दें कि नांदेड़ जिले के कुछ तहसील में सूखा का असर बहुत ज्यादा गहराता चला जा रहा है. यहां पर पानी की कमी के साथ-साथ पशुओं के चारे और पानी की समस्या भी बहुत ज्यादा गंभीर है. ये हालात मई की शुरुआत से ही है. नांदेड़ जिले में भी पानी की समस्या है. हालात ये हें कि नदियाँ, झीलें सूख गए हैं. कुएं का जल स्तर भी बिल्कुल ही नीचे जल गया है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक लोहा तहसील में हर्बल गांव की आबादी 4000 से ज्यादा है और सबसे ज्यादा पानी की किल्लत यही पर है. चार किलोमीटर दूर से पाइप लाइन के जरिए पानी लाकर कुएं में डाला जा रहा है.
प्रशासन ने नहीं की टैंकर की व्यवस्था
यहां तक कि हर्बल गांव के ग्रामीणों को वह दूषित पानी भी पीना पड़ रहा है. ताईबाई टांडा में भी पानी से मुश्किले बहुत ज्यादा बढ़ गईं हैं. लगभग 400 की आबादी वाले इस तपके को एक ही बोर से पानी लेना पड़ता है. कही लोगों को तो पानी भी नहीं मिल पा रहा है. एक दूरी पर झील है. वहां से ग्रामीण बाइक और अन्य वाहनों के जरिए पानी लाने को विवश हैं. पानी की कमी के बावजूद प्रशासन ने टैंकर की व्यवस्था नहीं की है. ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से टैंकर भेजने की मांग की है.
औने-पौने दाम पर बिक रहे बुल
नांदेड़ जिले की कई तहसीलों में पानी की कमी की वजह से इंसानों के साथ-साथ पशुओं के चारे और पानी की समस्या भी गंभीर रूप ले चुकी है. सूखे की मार और पानी की किल्लत की वजह से जानवरों को बेचने के लिए बाजार में ले जाना पड़ रहा है. वहां जो भी कीमत मिल रही है उसी पर जानवरों को बेचना पड़ रहा है.
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