नई दिल्ली. कुत्तों में होने वाले कैनाइन डिस्टेंपर वायरस का इलाज करने की दिशा में भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान आईवीआरआई को एक बड़ी कामयाबी मिली है. आईवीआरआई ने इसके लिए सटीक और बेहद ही कारगर डायग्नोस्टिक किट तैयार की है. संस्थान के साइंटिस्ट ने बताया कि मौजूदा समय में इस्तेमाल होने वाली किट से बनाई गई नई किट काफी बेहतर है. क्योंकि नए पीसीआर आधारित नैदानिक परीक्षण वायरस के सभी प्रकार के वैरिएंट की जांच इससे हो सकेगी.
जानें कितना खतरनाक है सीडीवी वायरस
बता दें कि कुत्तों में रैबीज के साथ ही कैनाइन डिस्टेंपर नामक खतरनाक व जानलेवा वायरस पाया जाता है.
जब टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्क के शेर, तेंदुए आदि मांसाहारी जानवर जब आसपास के गांवों के कुत्तों का शिकार करते हैं तो यह वायरस उनके शरीर में पहुंच जाता है.
कई बार इन कुत्तों के संपर्क में आने मात्र से भी शेर और तेंदुए आदि के शरीर में कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (सीडीवी) पहुंच जाता है.
यह ग्रसित कुत्तों का शिकार करने या इनके संपर्क में आने से मांसाहारी पशुओं को चपेट में ले लेता है.
वायरस नए किट से समय रहते बीमारी की पहचान कर वायरस ग्रस्त कुत्तों को अलग कर शुरू किया जा सकेगा.
वायरस इतना खतरनाक होता है कि इससे बिल्ली की वंश वाले जानवरों की मौत हो जाती है.
2017 में शुरू किया गया काम
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. मुकेश भट्ट के मुताबिक साल 2017 में कैनाइन डिस्टेंपर वायरस के वैरिएंट्स का पता लगाने और इसके उच्च गुणवत्ता के नैदानिक परीक्षण तैयार करने का काम शुरू किया.
भारत में इंडिया 1 व 2 प्रकार के कैनाइन डिस्टेंपर वैरिएंट्स की पुष्टि की गई और प्रचलित नैदानिक परीक्षणों के मुकाबले में बेहतर अतिसंवेदनशील नैदानिक परीक्षणों को तैयार किया गया.
यह पीसी आर आधारित नैदानिक परीक्षण कैनाइन डिस्टेंपर विषाणु के नए वैरिएंट इंडिया-1 और 2 के साथ ही हर तरह के स्ट्रेन की पहचान करने में सक्षम है.
इस तकनीक से समय रहते विषाणु की पहचान कर वायरस ग्रसित कुत्ते तेया या अन्य पशुओं को अलग कर इलाज शुरू किया जा सकता है, जिससे इस वायरस का संक्रमण अन्य पशुओं में पहुंचने से रोका जा सकता है.
डॉ. मुकेश भट्ट को इस उपलब्धि के लिए आईबी आर आई के ग्यारहवें दीक्षांत समारोह में उन्हें गोल्ड मेडल भी प्रदान किया गया.
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