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Animal Husbandry: राजस्थान में 500 गायों की इस खतरनाक बीमारी से मौत, पढ़ें बचाव के तरीके

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. राजस्थान में गर्मी बढ़ते ही गायों के लिए मुश्किल का दौर शुरू हो गया है. राजस्थान केे जैसलमेर से खबर है कि यहां कर्रा बीमारी ने दुधारु गार्यों पर कहर बरपा रही है. इस साल अब तक 500 से अधिक गायों की मौत हो चुकी है. हालांकि सरकारी आंकड़ा 187 मौतें बता रहा है. गौरतलब है कि इस बीमारी की वजह से पिछले साल 1500 से ज्यादा दुधारु गायों की मौत हो गई थी. सबसे ज्यादा चिंता की बात ये है कि विभाग के पास इस बीमारी का कोई टीका व इलाज नहीं है. हालांकि पशु चिकित्सकों का कहना है कि कर्रा रोग के लक्षण दिखते ही यदि लिक्विड चारकोल बीमार गाय को पीला दिया जाता है तो बचने की संभावना ज्यादा और मौत की आशंका बिल्कुल कम हो जाती है.

बता दें कि कर्रा रोग होते ही गाय के आगे के पैर जकड़ जाते हैं और गाय चलना बंद कर देती है. मुंह से लार टपकती है और चारा खाना व पानी पीना भी बंद हो जाता है. कर्रा रोग लगने के 4 से 5 दिन में गाय की मौत हो जाती है. बता दें कि जैसलमेर में डाबला, देवीकोट, सोनू, खुईयाला, पूनमनगर, सगरा, जांवध, मूलाना, रिदवा, चांधन, सांवला, काठोड़ी, खारिया, तेजपाला, सदराऊ, मोतीसर, लूणा कल्ला, रातड़िया, भाखरानी व धोलिया सहित कई गांवों में कर्रा रोग का असर है.

शव को छोड़ें नहीं दफ्ना दें
जहां कर्रा रोग ने पांव पसार चुका है तो वहीं मृत गायों के शवों का निस्तारण सही तरीके से नहीं किया जा रहा है. लोग गायों के शवों को गांव के पास ही खुले में छोड़ रहे हैं, जो और ज्यादा खतरनाक है. क्योंकि कई पशु पशुओं के शव चाट रहे हैं और इससे वो भी कर्रा रोग की चपेट में आ रहे हैं. गायों के शवों को गड्डा खोद कर दफनाना चाहिए, तभी बीमारी को रोका जा सकता है. अधिकारियों ने भी ये निर्देश दिया है कि कर्रा रोग से मरने वाली गायों के शवों को गड्डा खोदकर दफनाया जाए. कई इलाकों में वैज्ञानिक विधि से शव को दफनाए जा रहे हैं लेकिन जहां शव खुले में छोड़े जाते है वहां इस बीमारी के फैलने की आशंका ज्यादा है.

इस तरह से फैलता है ये बीमारी
एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि गर्मियों के मौसम में गायों में मृत पशुओं के शवों के अवशेष व हड्डियां आदि चाटने से कर्रा रोग (बोटूलिज्म) हो जाता है. क्योंकि मृत पशुओं के शवों के सड़ने से कलोस्ट्रीडियम बोटूलाईनम जीवाणु के द्वारा बोटूलाईनम नामक बेहद तेजी से जहर उत्पादित होता है. चारे में फासफोरस तत्व की कमी तथा दुधारु गायों में दुग्ध उत्पादन के कारण उसके शरीर में फासफोरस की कमी हो जाती है, जिससे इनकी पूर्ति के लिए ये पशु मृत पशुओं की हड्डियां खाना शुरु कर देते हैं.

क्या उपाय करें जानें यहां
कर्रा रोग के प्राथमिक लक्षण पाए जाने पर तुरंत ही लिक्विड ऐक्टीवेटेड चारकोल 200 से 300 एमएल प्रतिदिन 3 दिन तक पिलाएं. इससे पीड़ित गाय की मौत की आशंका कम हो जाएगी और बचने की संभावना ज्यादा रहेगी. कर्रा रोग से पशुओं के बचाव के लिए पशु चिकित्सालय एवं पशु चिकित्सा उप केंद्र में उपलब्ध मिनरल मिक्सर पाउडर को लें जाकर दुधारू पशु को प्रतिदिन 50 ग्राम पाउडर नमक दाने के साथ हर दिन खिलाएं.

बंद पड़े हैं पशु अस्पताल
मीडिया रिपोर्ट की मानें तो जिले में मुख्य रुप से जहां पशु चिकित्सा सेवाएं जरूरी हैं वहीं केंद्र बंद पड़े हैं. जिले में कुल 200 चिकित्सा केंद्र स्वीकृत है. जिसमें से 120 सेंटर बंद पड़े हैं. जिसमें मुख्य रुप से देवीकोट, पूनमनगर, सम, सतों, लखा, नोख, भीखोड़ाई, राजमथाई, सांवला, रिवा, खारीया व बैरसियाला सहित कई ऐसे सेंटर है जिन पर ताले लटके हुए हैं.

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