नई दिल्ली. युवाओं की भोजन शैली में हो रहे परिवर्तन और परिवारों की बढ़ती आय में आने वाली वृद्धि के कारण भारत में मुर्गीपालन क्षेत्र में वार्षिक रूप से ब्रॉयलर में 15% और देसी मुर्गियों में 10% की बढ़त हुई है. अक्सर पोल्ट्री शब्द को मुर्गियों का पर्यायवाची शब्द माना जाता है, इसमें पक्षियों की कई पालतू प्रजाति जैसे कि मुर्गी, बत्तख एमु, हंस गिनी मुर्गी, जापानी बटेर, शुतुरमुर्ग, कबूतर, रिया इत्यादि शामिल होते हैं. इनमें अधिकतर प्रजाति कई तरह की कृषि जलवायु में अच्छी तरह से फलती-फूलती हैं और इन्हें न्यूनतम आवश्यकताओं के साथ कम से कम प्रबंधन के साथ तथा पोषक तत्वों की जरुरतों को पूरा करते हुए दुनिया में कहीं भी सफलतापूर्वक शुरू किया जा सकता है.
इनमें से कई प्रजातियाँ दूसरी प्रजातियों के प्राणियों की तुलना में मिलने वाले प्रोटीन के बेहतरीन स्रोत हैं. मुर्गियों और बत्तखों, दोनों का ही प्रयोग अंडों और माँस के व्यवसायिक उत्पादन के लिए होता है. टर्की और गिनी का उत्पादन माँस के लिए होता है, जबकि एमु और शतुरमुर्ग माँस, तेल, पंख और चमड़े बनाने के काम में आते हैं. मुर्गीपालन शब्द आमतौर पर मुर्गी के लिए प्रयोग में लाया जाता है, लेकिन इसमें अन्य प्रजातियाँ जैसे कि बत्तख, टर्की, गिनी पक्षी, बटेर एमु और हंस भी शामिल होते हैं.
अब अंडों के लिए होने लगा इस्तेमाल
पुराने जमाने में पालतू पक्षियों को इस्तेमाल बलि के लिए किया जाता था. मुर्गियों की बड़ी आवाज और लड़ाई जैसे गुण के कारण उन्हें पाला जाता था. ये लोगों का मनोरंजन का अच्छा स्रोत थे. काफी समय बाद, दूसरे पक्षियों की प्रजाति की तुलना में इनके अंडों का इस्तेमाल खाने और दूसरे कामों में होने लगा. इसके अलावा, पहले यह माना जाता था मुर्गियों की जैविक सामग्री और इनके अंडे मानव विकास और उपभोग के लिए योग्य नहीं हैं.
पहले जंगली फिर आई घरेलू मुर्गी
मुर्गी (चिकन) शब्द पुराने अंग्रेजी शब्द ‘icen’ और जर्मन भाषा ‘kivkenam’ से आता है और मुर्गा (keuk) लाल जंगली मुर्गी (RJF) गैलस गैलस शब्द से आता है, ये सभी पालतू मुर्गी से जैसे दिखते हैं. चार्ल्स डार्विन के अनुसार, मुर्गियों को मूल रूप से लाल जंगली मुर्गियों (RJF) का वंशज माना जाता है. इसके बाद से घरेलू पक्षियों की प्रजाति की उत्पत्ति हुई. लगभग 7,500 वर्ष पहले मुर्गी पालन प्रारंभ हुआ. कोलमैन ने (1958) ने घरेलू मुर्गियों के भाषाई संदर्भ का एक ठोस तर्क प्रस्तुत किया.
मुर्गियों में हैं चार प्रजातियां
एग्रीकल्चर स्किल काउंसिल आफ इंडिया के मुताबिक पूरे एशिया और मध्य तथा उत्तरी यूरोप में प्रचलित संस्कृत शब्द “कुक्कुट” से यह बदलते हुए इंग्लैंड में जाने के बाद “चिकन” और “मुर्गे” के नाम से दुनिया भर में मशहूर हो गया. जंगली मुर्गे की 4 प्रजातियां प्रचलित हैं. इन्हें मूल रूप से गैलस गैलस (जंगली लाल मुर्गा), गैलस गैलस सोनेरटी (जंगली स्लेटी मुर्गा), गैलस लेफेयेटी (सीलोन जंगली मुर्गा) और गैलस (जंगली हरा मुर्गा), ये भी “गैलस” यानी मुर्गे की प्रजाति से जुड़े हैं.
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