नई दिल्ली. इंडिया में नॉनवेजिटेरियन फूड खाने वालों की भी अच्छी खासी तादात है. देश के कई राज्य तो ऐसे हैं, कि नॉन वेज के बिना वहां के लोगों का काम ही नहीं चलता है. आमतौर पर कुछ सौ रुपये किलों में ही मछली मिल जाती है और लोग इसे चाव से खाते हैं. मछलियां समुद्री और मीठे पानी में पाली जाती हैं. दुनिया में दर्ज की गई कुल मछली प्रजातियों में से लगभग 9.7 प्रतिशत भारतीय जल में पाई जाती हैं. कई मछली पालक अपनी मछलियों के ठीक से नहीं बढ़ने की शिकायत करते रहे हैं. कुछ मछली पालक निराश हो जाते और मछली पालन छोड़ देना चाहते हैं.
खराब वृद्धि को बहुत से कारण हैं, मछली पालक नहीं जानते हैं कि वह मछली पालन में कुछ महत्वपूर्ण चीजें हैं जो वे सही नहीं कर रहे हैं. उसी वजह से मछली का सही वृद्धि नहीं हो पा रहा हैं. यदि आप सही विधि से मछली पालन नहीं करते हैं, तो आप खराब वृद्धि, मृत्यु और पूंजी निवेश में नुकसान हो सकता है. ऐसे कई कारक हैं जो धीमी वृद्धि का कारण बन सकते हैं. कुछ प्रमुख कारकों की जानकारी हम आपको आर्टिकल में दे रहे हैं.
मछली पालन में ऑक्सीजन लेबल सुधार के लिए आप कई कदम उठा सकते हैं.
- रात के समय एयररेटर का प्रयोग करें, जब घुलित ऑक्सीजन 4 पीपीएम से कम हो
- जब प्लवक मर जाता है तो क्षयकारी प्लवक को बाहर निकाल दें और अतिरिक्त वायुयान प्रदान करें और अतिरिक्त घंटों के लिए वायु प्रवाहित करें.
3 आहार खिलाने के दरों को कम करें या अधिक बार खिलाने पर एक ही फीड फैलाएं. - तापमान के अंतर से बचने के लिए तालाब के पानी को परिचालित करें.
- कम घुलित ऑक्सीजन स्तर में सुधार के लिए पानी का आदान-प्रदान करें.
कैसा रखें तापमान
पानी का तापमान मछली और झींगा के उपापचय, भोजन दर और अमोनिया विषाक्तता को प्रभावित कर सकता है. तापमान ऑक्सीजन की खपत दर पर सीधा प्रभाव डालता है और ऑक्सीजन की घुलनशीलता को भी प्रभावित करता है. (गर्म पानी में ठंडे पानी की तुलना में कम घुलित ऑक्सीजन होता है). तालाब में तापमान पूर्णरूप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. जलीय जंतु अपने शरीर के तापमान को पर्यावरण के अनुसार बदलते हैं और तेजी से तापमान में बदलाव के प्रति संवेदनशील होते हैं. प्रत्येक प्रजाति के लिए, तापमान की स्थिति की एक सीमा होती है। इसलिए मछली और झींगा को टैंक से तालाब में ट्रांसफर करते समय अनुकूलित करना महत्वपूर्ण है. तापमान में प्रत्येक 10 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि उपापचय, रासायनिक क्रियाऐं और ऑक्सीजन खपत की दर को दोगुना कर देती हैं.
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