नई दिल्ली. ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरों तक आज मुर्गी पालन किसानों के आजीविका का एक मुख्य जरिया बन गया है. दरअसल, ऐसा इसलिए हो रहा है कि मुर्गी पालन कम लागत में अधिक फायदा देने वाला व्यवसाय है. जबकि बेहद ही आसानी से इनका रखरखाव किया जा सकता है. जिसके कारण आज के इस दौर में बड़े व्यवसाय के रूप में उभर रहा है. इसकी खास बात ये भी है कि बेरोजगार युवा और महिला भी इसे आसानी से कर सकते हैं. मुर्गी पालन में तकनीकी जानकारी की आवश्यकता होती है. जैसे कि अलग-अलग मौस में मुर्गी पालन में कौन-सी सावधानियां रखना आवश्यक है जिससे होने वाली हानि को कम या उससे बचा जा सकता है.
कृषि विज्ञान केंद्र बैतूल मध्य प्रदेश के पोल्ट्री एक्सपर्ट डॉ. अनिल शिंदे, डॉ. संजीव वर्मा और डॉ. अनिल वर्मा ने लेख के जरिए बताया कि अभी मॉनसून का सीन चल रहा है. वहीं बारिश भी हो रही है. ऐसे में मुर्गियों को स्पेशल केयर की जरूरत होगी. उन्होंने बताया कि ऐसे में बरसात शुरू होने से पहले मुर्गी आवास, आहार की व्यवस्था बनानी चाहिए.
आवास प्रबंधन की होती है जरूरत
सबसे पहले मुर्गी घर की मरम्मत कर लेनी चाहिए. जैसे कि छत की मरम्मत दाना घर की मरम्मत आदि. मुर्गीयों का शेड ऊंची एवं समतल जगह होना चाहिए और बारिश के दिनों में बारिश का पानी अंदर नहीं जाना चाहिए. बारिश का पानी शेड के आसपास जमा नहीं होना चाहिए. क्योंकि उसमें बैक्टीरिया, वायरस पनपते हैं और वह कई रोगों का कारण बन सकते हैं. यदि मुर्गी का शेड साधारण बना हो और ऊपर से खुला हो तो ऊपर से प्लास्टिक या पॉलिथिन बिछानी चाहिए. ताकि बारिश का पानी अंदर प्रवेश न कर सके. जाली की तरफ से पानी अंदर न जाएं. इसलिए पॉलिथिन से बंद करना चाहिए और धूप निकलते या बारिश बंद होने पर उसे खोलना भी चाहिए.
बिछावन को लेकर क्या करें
बारिश के दिनों में बुरादे का प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण होता है. बरसात शुरू होने से पहले मुर्गी घर का बुरादा बदल देना चाहिए और बाद में अगर बारिश में गिला हो जाए तब सूखा बुरादा मिलाते रहना चाहिए. या उसमें सफेद चुना 1 किलोग्राम की दर से 1 वर्ग मीटर जगह के बुरादे में मिला देना चाहिए. जिससे गिले बुरादे की नमी कम हो जाए. बुरादे में 20-25 प्रतिशत नमी होनी चाहिए. ज्यादा नमी होने पर कई तरह के रोगों को निमंत्रण मिलता है. जैसे कि कॉक्सीटीओसिस और अन्य फफूंद संक्रामक रोग नहीं होगा. बिछावन के लिए आमतौर पर लकड़ी एवं धान का भूसा प्रयोग किया जाता है. बरसात के दिनों में खासतौर पर लकड़ी का बुरादा प्रयोग करना चाहिए क्योंकि यह पूरी तरह से नमी को सोख लेता है.
आहार प्रबंधन भी है जरूरी
बरसात में दाने के भंडारण का विशेष ध्यान रखना चाहिए. अगर दाने में 10 प्रतिशत से अधिक नमी हो तो उसमें फफूंद लगने की संभावना बढ़ जाती है और बीमारियां शुरू हो जाती है. इसलिए दाने का भंडारण सूखी और जमीन से ऊंची जगह पर करना चाहिए. छत से उस पर पानी नहीं टपकना चाहिए. मुर्गियों को साफ-सुथरा पानी पीने के लिए देना चाहिए और पानी के सोर्स को जैसे कि कुओं एवं तालाबों में निःसंक्रामक (Disinfectant) का छिड़काव कर देना चाहिए और इसके साथ-साथ अनावश्यक पानी के गड्डों की मरम्मत कर देनी चाहिए.
हेल्थ का ख्याल रखना भी है जरूरी
बरसात में दिन के मौसम में कई तरह के बदलाव आते हैं. कभी बारिश, ठंड और गर्मी भी लगने लगती है. इसी कारण से मुर्गियों में कई तरह की बीमारियों का खतरा रहता है. खासतौर पर कॉक्सीडीओसिस (खून के दस्त) जो कि बुरादे की नमी के कारण होते हैं और इसमें मृत्यु दर भी काफी बढ़ जाती है. इस बीमारी से बचाव के लिए बुरादा सूखा रहना जरूरी होता है और मुर्गियों के दानों में कॉक्सीडीओस्टेट मिला सकते हैं या बीमार मुर्गियों को एम्प्रोजोल नामक दवाई पशु चिकित्सक के निर्देशानुसार पिलानी चाहिए.
मुर्गियों में बरसात के दिनों में होता है परजीवी रोग
आंतरिक परजीवी का प्रकोप दिखता है. ऐसे में 21 दिनों के अंतराल से मुर्गियों को दो बार आंतरिक परजीवीनाशक दवाई पिलानी चाहिए. कई बार घर के पिछवाड़े में पलने वाली मुर्गियों में बारिश का पानी पीने की वजह से जीवाणु जन्य रोगों के लक्षण जैसे दस्त लगना, कमजोर होना, सर्दी-जुकाम आदि दिखाई दें तब उन्हें सही एन्टीबॉयोटिक दवाई पानी में घोलकर पिलानी चाहिए. अंत में बरसात में आवास, बिछावन, आहार एवं स्वास्थ्य का प्रबंधन किया जाए तो निश्चित ही मुर्गी पालन एक लाभकारी व्यवसाय हो सकता है.
Leave a comment