Home मछली पालन Fish Farming: जानें भारत में कब शुरू हुई केज कल्चर फिश फार्मिंग, इसके फायदों के बारे भी पढ़ें यहां
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Fish Farming: जानें भारत में कब शुरू हुई केज कल्चर फिश फार्मिंग, इसके फायदों के बारे भी पढ़ें यहां

cage culture fish farming
प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. मछली पालन के लिए केज चारों तरफ से और निचली सतह से जाल से घिरा होता है. जिससे पानी आसानी से उसके अंदर जा आ सके. आमतौर पर केज का इस्तेमाल मछली को जीरा से फिंगर बनाने या फिंगर से बेचने लायक यानि ए​क केजी तक बनाना होता है. कहा जाता है कि पिंजरे में मछली पालन की प्रक्रिया को दक्षिण पूर्व एशिया में, विशेष रूप से मीठे पानी की झीलों और कंपूचिया की नदियों में वर्ष 1800 के आखिरी में की गई थी. वहीं खारे पानी में इसे 1950 के दशक में जापान में शुरू किया गया था.

वहीं भारत में पिंजरे में मछली पालन की शुरुआत सबसे पहले प्रयागराज में यमुना और गंगा के बहते पानी में कार्प मछली को पालने और कर्नाटक के स्थिर पानी निकायों में कार्प, तिलापिया और नेक हेड मछली को पालने से किया गया था. बाद में पिंजरों का इस्तेमाल जीरा के प्रोडक्शन के लिए कई रिजर्वायर और बाढ़ के मैदानों में उन्नत फिंगर्स के उत्पादन के लिए किया गया था.

2021 में मिली थी बड़ी कामयाबी
आपको यहां ये भी बताते चलें कि झारखंड के चांडिल रिजर्वायर में पिंजरे में मछली पालन का सफल उदाहरण पेश किया गया. झारखण्ड मत्स्य विभाग द्वारा सहकारी समितियों की सहायता से यहां मछली पालन के लिए साल 2021 तक 1070 पिंजरे स्थापित किए गए हैं. जलाशय निर्माण के कारण विस्थापित लोगों को आजीविका के अवसर देने एवं राज्य के मछली उत्पादन को बढ़ाने का ये एक बड़ा जरिया बन गया है. इसलिए चांडिल जलाशय में पिंजरे में मछली पालन करने से लोगों की आजीविका पर पड़े प्रभाव को जानने के मकसद से एक रिसर्च किया गया और उसके बारे में जानकारी भी दी गई.

केज कल्चर का है कई फायदा
एक्सपर्ट का कहना है कि पिंजरे में मछली पालन से कम प्रदूषण होता है और रिजर्वायर की हैल्थ को ये को बनाए रखता है. इंटरनेशनल सेंटर फॉर लिविंग एक्वेटिक रिसोर्स मैनेजमेंट 2009 ने भी पिंजरे में मछली पालन के कई फायदों के बारे में बताया गया था. जैसे फिंगर्स की जीवन दर को बढ़ाने इत्यादि. रोजमर्रा के रखरखाव और निगरानी अपेक्षाकृत सरल होने के कारण इसमें संचयन आसान, तेज और पूर्ण होता है. पिंजरे में मछली पालन के माध्यम से, उच्च पैदावार बहुत ही कम लागत में प्राप्त की जा सकती है.

बढ़ावा दिया जा रहा है
पिंजरे में मछली पालन के लाभ को देखते हुए राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड भी जलाशय में पिंजरे में मछली पालन की बढ़ावा दे रहा है. जैसे कि तमिलनाडु, तेलंगाना, असम, महाराष्ट्र, राजस्थान, झारखण्ड एवं छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्यों में प्रचलित हो रहा है. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अनतर्गत भी इसे प्रोत्साहित किया जा रहा है.

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