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Animal Husbandry: भेड़-बकरियों के मेमने को होती ये बीमारी, पैदा होते ही ये करें तो नहीं होंगे बीमार

goat farming
प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. भेड़ हो या फिर बकरी अगर इसके पालन में मेमने से फायदा दोगुना हो जाता है, लेकिन मसला ये भी है कि इनके मेमनों की मृत्युदर भी बहुत ज्यादा है. ऐसी कई बीमारियां हैं, जिनके कारण मेमनों की मौत हो जाती है. इस वजह से भेड़ पालक और बकरी पालक को नुकसान उठाना पड़ जाता है. हालांकि मेमनों के पैदा होने के दौरान कुछ बातों का ध्यान दिया जाए तो बीमारियों से निजात मिल सकती है. वहीं अगर पशुपालकों को बीमारी के लक्षण को पता रहे और इसके इलाज के बारे में तो फिर मुश्किल नहीं होगी. आइए मेमनों को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली ऐट्रेसिया ऐनाई बीमारी के बारे में जानते हैं.

पशु एक्सपर्ट नितिका शर्मा, विनय चतुर्वेदी एवं एम. के. सिंह का कहना है कि गुदाविहीनता (ऐट्रेसिया ऐनाई) यह भेड़ों व बकरियों में पाई जाने वाली जन्मजात बीमारी है. इस का कारण मलद्वार की भित्ति का बन्द होना है. इस स्थिति में मलद्वार न होने के कारण नवजात मेमने मल को बाहर नहीं कर पाते हैं. अगर वक्त रहते इलाज न मिले तो फिर उनकी मौत भी हो जाती है. इसलिए तुरंत इलाज होना जरूरी होता है.

नर मेमनों में ज्यादा होती है दिक्कत
एक्सपर्ट का कहना है कि गुदाविहीनता दोष नर मेमनों में मादा की अपेक्षा अधिक मिलता है. नवजात मादा मेमनों में आमतौर पर इस स्थिति में मलद्वार एवं योनि के बीच एक फिस्चुला बन जाता है जिससे मूत्र तंत्र के संक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती है. उपचार की बात की जाए तो नवजात मेमना मल विसर्जन का प्रयास करे और मलद्वार उभर कर बाहर आए तो यह स्थिति उपचार के लिए होती है. इस दशा में सर्जरी के जरिए मलद्वार को बनाया जा सकता है तथा मेमने का जीवन बचाया जा सकता है. लेकिन इस तरह के उभार का न बनना गर्भकाल में मलाशय के अपर्याप्त विकास को दर्शाता है और ऐसे मेमने को सर्जरी द्वारा भी उपयोगी नहीं बनाया जा सकता है.

इन बातों पर ध्यान देने जरूरी
एक्सपर्ट का कहना हे कि जरूरत है कि नवजात मेमने के पैदा होते ही पशुपालक द्वारा सामान्य मलद्वार होने की पुष्टि कर ली जाए. इसके अलाव सामान्य से अलग किसी भी दशा की देरी पशु चिकित्सक द्वारा उपचार कराना सुनिश्चित करें. इसके अतिरिक्त गुदाविहीनता जैसी जन्मजात विसंगति यदि किसी मेमने में दिखाई दे तो उन मेमनों को बधिया करा दें तथा उनका प्रयोग प्रजनन के लिए न करें. अगर ऐसा करते हैं तो अगली नस्ल में भी इस बीमारी के जाने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी.

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