नई दिल्ली. महाराष्ट्र सरकार के अधीन आने वाली महानंद डेयरी के निदेशक मंडल ने डेयरी का नियंत्रण राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) को सौंपने पर मंजूरी दे दी है. निदेशक मंडल के फैसले पर राज्य में दूध उत्पादक चिंता व्यक्त कर रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि सरकार और बोर्ड ने महाराष्ट्र में अमूल के विस्तार को सुविधाजनक बनाने के लिए ये फैसला लिया है. वहीं विपक्ष को भी सरकार पर हमला करने का बहाना मिल गया है. कांग्रेस और शिवसेना विपक्षी गुट ने सरकार पर महानंदा को गुजरात प्रयास करने का आरोप लगाया है. वहीं सवाल ये भी है कि जिन 530 कर्मचारियों ने वीआरएस ले लिया है उनका बकाया 150 करोड़ रुपये कौन चुकाएगा.
राज्य सरकार ने स्वीकार किया
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने पहले ही इस बात के संकेत दे दिए थे कि राज्य एनडीडीबी के माध्यम से महानंद को केंद्र सरकार को सौंपन देगी. सरकार ने ये स्वीकार किया था कि डेयरी अस्तित्व संकट में है. राज्य ने ये माना था कि “राज्य के दूध व्यवसाय में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी में बहुत ज्यादा इजाफा हो गया है. दरअसल, निजी क्षेत्र बिक्री और विस्तार बढ़ाने के लिए तमाम आधुनिक मार्केटिंग तकनीकों पर काम कर रहा है. जिसका असर सहकारी क्षेत्र और उनकी बिक्री पर पड़ा है. इस संबंध में महाराष्ट्र के पशुपालन और डेयरी विकास मंत्री राधाकृष्ण विखे पाटिल ने एक लिखित सवाल के जवाब में कहा था कि “सबसे अधिक प्रभावित (दूध क्षेत्र में) शीर्ष संस्था महानंद है और संस्था रोज होने वाले खर्चों का भी ध्यान नहीं रख पा रही है.” विधानसभा में सरकार ने स्वीकार किया था कि महानंद “विभिन्न कारणों” से वित्तीय संकट में है. जबकि मंत्री ने ये भी कहा था कि राज्य की अन्य सहकारी दूध डेयरियां भी महानंद की तरह किसी वित्तीय संकट का सामना नहीं कर रही हैं.
विपक्ष ने लगाया ये आरोप
वहीं राज्य में दूध किसान और संघ दावा कर रहे हैं कि महानंद डेयरी का नियंत्रण राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) को सौंपने का सरकार का निर्णय इसलिए हुआ कि महानंद की जगह पर राज्य में अमूल को स्थापित किया जा सके. इस पूरे मामले पर शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने कहा कि सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करना चाहिए. महानंद अपनी पहचान के साथ राज्य में एक अच्छी तरह से स्थापित ब्रांड है. उन्होंने आरोप लगाया कि और चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि कई परियोजनाओं को गुजरात में ट्रांसफर करने समेत सरकार की कार्रवाइयां ये दर्शाती है कि वो महाराष्ट्र की कीमत पर पड़ोसी राज्य का पक्ष ले रही है.
कर्मचारियों का क्या होगा
न तो महाराष्ट्र सरकार और न ही एनडीबीबी ने ये साफ किया है कि महानंद में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेने वाले 530 कर्मचारियों का बकाया 150 करोड़ रुपए कौन चुकाएगा? इसलिए कुछ मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे में महानंद को एनडीडीबी को हस्तांतरित करने की प्रक्रिया अटक सकती है. गौरतलब है कि महानंद में 850 कर्मचारी हैं. पिछले साल उनकी संख्या 940 थी लेकिन करीब 530 कर्मचारियों ने वीआरएस ले लिया था. कर्मचारियों के बकाये की रकम करीब 150 करोड़ रुपए है और एनडीडीबी यह बोझ उठाने को तैयार नहीं है. ऐसे में उनका पैसा फंसता भी नजर आ रहा है. या ये हो सकता है कि राज्य सरकार 50 फीसदी सब्सिडी और 50 फीसदी लोन दे दे.
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