नई दिल्ली. पशुओं का ब्याहत वैसे तो लगभग पूरे वर्ष होता रहता है. लेकिन पशुओं में जैसे भैस नवम्बर से दिसम्बर के महीने में ब्याहती हैं. जनवरी की कड़ाके की ठंड के बाद फरवरी और मार्च के आते ही गर्मी की दस्तक शुरू हो जाती है. इनके गर्मी में आने के लिए सर्दी का मौसम बहुत उपयुक्त होता है. जिन पशुओं की गर्भायन अक्टूबर व नवम्बर महीने में होता है वे पशु अगस्त व सितम्बर महीने में ब्याह जाते हैं. गर्भायन होने के 45-60 दिन के अंदर पशु की गर्भ के लिए जांच जरूर करवानी चाहिए. गर्भावस्था के अंतिम दो माह में पशुओं को दूध लेने से अलग कर देना चाहिए. गाय को दूध से हटाने के बाद हर रोज ढाई किलोग्राम संतुलित पशु आहार देना बहुत जरूरी है. ब्याहने के एक सप्ताह पहले गाभिन पशु को अन्य पशुओं से दूर रखना बेहद जरूरी है.
यदि गर्भवती पशुओं को खाने के लिए कम खाना दिया जाता है, तो जब वे बच्चे को जन्म देंगी और दूध देना शुरू करेंगी, तो उनकी शारीरिक स्थिति खराब होने का खतरा रहता है. दूध में काफी कमी हो जाएगी. वे फिर से चक्रण शुरू करने में भी धीमी होंगी. कम खाना खाने वाले पशु हल्के और कमजोर बच्चों को जन्म दे सकते हैं. वहीं उनके दूध की मात्रा भी घट जाती है. ऐसे में आहार बेहद जरूरी है.
अच्छा खिलाना है बेहद जरूरी; छोटे जुगाली करने वाले पशुओं में, मादा जुड़वां या तीन बच्चों को पालने में असमर्थ हो सकती है और एक या अधिक बच्चे गर्भ में ही खत्म होने का खतरा हो सकता है. गर्भवती अपरिपक्व पशुओं पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए. गर्भवती बछिया, भेड़, आदि को रखरखाव, विकास और गर्भावस्था के लिए अच्छा खिलाना जरूरी है.
मवेशियों को दें ये आहार
बच्चा होने के बाद अपने मवेशी को आधा किलोग्राम गुड़, तीन किलो चोकर, 60 ग्राम नमक और 50 ग्राम मिश्रण के साथ भरपूर हरा चारा दिया जाना चाहिए. मवेशी को गर्भ धारण करने से पहले ही अच्छा सेहतमंद आहार देना बेहद जरूरी होता है. आहार में आप जौं का दलिया, मकइ का दलिया, चने की भूसी को शामिल कर सकते हैं. अगर आपके पास हरा चारा पर्याप्त मात्रा में है तो उसका भी उपयोग करें. कभी भी आहार में कमी ना होने दें. काफी बार देखने को मिलता है कि जब गाय या भैंस दूध देना बंद कर देती है तो उसकी देखरेख में भी कमी कर दी जाती है. जिससे वो आने वाले समय में दूध कम कर देती है.
Leave a comment