नई दिल्ली. देश में मीट खाने वालों की संख्या बढ़ रही है. चाहे ये संख्या हैल्थ अवेयरनेस की वजह से बढ़ रही हो या फिर टेस्ट की वजह, लेकिन अब देश में तकरीबन 70 फीसद लोग नॉनवेजेटेरियन हैं. इस वजह से सरकार का भी ध्यान एक्सपोर्ट के अलावा देश के बाजार पर गया है. सरकार मीट प्रोडक्शन को बढ़ावा देने के लिए कई काम कर रही है. जैसे किसानों को आर्थिक मदद दी जा रही है. प्रोडक्शन के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करने का काम भी सरकार की तरफ से किया जा रहा है.
सरकार ट्रेनिंग भी दे रही है. वहीं मीट उत्पादन इकाइयों को स्थापित करने के साथ—साथ नई टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने का भी काम किया जा रहा है. ताकि शव उपयोग केंद्र (CUC) और हड्डी-कुचलने वाली इकाइयां बनाई जा रही हैं.
सरकार ने उठाए हैं कई अहम कदम
सरकार छोटे व्यवसायों को प्रोसेसिंग के लिए लोन भी देती है. किसानों को भैंस के बछड़े, सूअर, बकरियों, ब्रायलर मुर्गियों, देशी पक्षियों, बत्तखों, बटेर और खरगोश के उत्पादन के लिए लोन दिया जा रहा है.
लाइसेंस वाले मांस पशु फार्म स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन ऋण, सब्सिडी, पशु चिकित्सा देखभाल और रोग नियंत्रण प्रदान करके प्रोत्साहित किया जा रहा है.
पारंपरिक छोटे पैमाने के किसानों को भी लाइसेंस प्राप्त किसानों की तरह उपयुक्त प्रोत्साहन के लिए माना जाएगा.
मांस पशु उत्पादन के लिए बीमा और ट्रेसिबिलिटी सुनिश्चित की जा रही है.
लाइसेंस प्राप्त मांस पशु फार्म में अच्छे पशुपालन प्रथाओं और अच्छे पशु चिकित्सा प्रथाओं को अपनानाया जा रहा है.
पीपीआार, क्लासिकल स्वाइन बुखार, ब्रुसेलोसीस, FMD, TB, मांस जनित पैथोज़न (सलमोनेला, कैंपिलोबैक्टर, एंटरोपैथोजेनिक ई-कोलाई) के संबंध में रोग मुक्त क्षेत्र, कंपार्टमेंटलाइजेशन, जोनिंग स्थापित की जा रही है.
निष्कर्ष
दरअसल, सरकार चाहती है कि मीट प्रोडक्शन को बढ़ावा दिया जाए ताकि लोगों को प्रोटीन वाला खाद्य उपलब्ध कराया जा सके. इससे खासतौर पर रूरल एरिया और अति पिछड़े इलाकों में लोगों की मीट की पूर्ति से शरीरिक जरूरतें पूरी होंगी.
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