नई दिल्ली. साहीवाल गाय की नस्ल ऐसी है जो दूध देने के मामले में अन्य गायों से बहुत बेहतर मानी जाती है. ये गाय 40 से 50 लीटर प्रतिदिन दूध देती है. वहीं इसका दूध भी बेहद ही पौष्टि माना जाता है और ये 60 से 65 रुपए तक बिकता है. जबकि अन्य नस्लों की गाय के दूध 25 से 28 रुपए लीटर में बिकते हैं. वहीं चंडीगढ़ में इस गाय का दूध 100 रुपये लीटर तक बिकता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि साहिवाल गाय के दूध में फैट और प्रोटीन बहुत होता है. इसलिए भी इसे पीन लोग पसंद करते हैं.
इसकी पहचान की बात की जाए ताो इस नस्ल के पशुओं का रंग लाल भूरा होता है. आकार मध्यम, छोटी टांगे सिर चौड़ा होता है. जबकि छोटे और भारी सींग गर्दन के नीचे लटकते हुए नजर आते हैं. ये नस्ल पंजाब के फिरोजपुर और अमृतसर जिलों में और राजस्थान के श्री गंगानगर जिले में मुख्य रूप से पाई जाती है. वहीं पंजाब में फिरोजपुर जिले के फाजिलका और अबोहर कस्बों में शुद्ध साहीवाल गायों के झुंड मिल जाते हैं.
ये फीड देना चाहिए
मक्की, जौ, ज्वार, बाजरा, छोले, गेहूं, जई, चोकर, चावलों की पॉलिश, मक्की का छिलका, चुन्नी, बड़ेवें व बड़ीवर, शुष्क दाने, मूंगफली, सरसों, अलसी, मक्की से तैयार खुराक आदि दिया जा सकता है. अगर हरे चारे की बात की जाए तो बरसीम, पहली दूसरी तीसरी और चौथी कटाई का, लुसर्न औसतन, लोबिया लंबी और छोटी किस्, गुआरा, सेंजी, ज्वार छोटी पकने वाली पकी हुई, हाथी घास नेपियर बाजार सूडान घास आदि इन्हें दिया जा सकता है. इसके अलावा बरसीम की सूखी घास, लुसर्न की सूखी घास जई की सूखी घास, परली, मकई के टिंडे ज्वार, जई आचार मुख्य है.
ताकि आसानी से खा सकें भोजन
अगर इन गायों से अच्छा प्रोडक्शन चाहते हैं तो पशुओं को भारी बारिश, तेज धूप, ठंड और परजीवी से बचने के लिए शेड बनाने की आवश्यकता होगी. सुनिश्चित करें कि चुने हुए शेड में साफ और हवा पानी की सुविधा होनी चाहिए. पशुओं की संख्या के अनुसार भोजन के लिए बड़ी और खुली जगह की व्यवस्था करनी चाहिए. ताकि वह आसानी से भोजन खा स0.कें. पशुओं के व्यर्थ पदार्थ की निकास पाइप 30 से 40 सेंटीमीटर चौड़ी और 5 से 7 सेंटीमीटर गहरी होने चाहिए.
वैक्सीनेशन जरूर करवाएं
एक्सपर्ट कहते हैं कि अच्छे प्रबंधन का परिणाम अच्छे बछड़े होने से है. दूध की मात्रा भी इससे अधिक मिलती है. गाभिन गाय को 1 किलो अधिक फीड दें, क्योंकि वह शारीरिक रूप से बढ़ती है. बछड़ों के जन्म के बाद 6 महीने हो जाने पर पहला टीका, ब्रूसीलोसिस का लगवाना चाहिए. एक महीने बाद मुंह खुर का टीका लगवाना चाहिए. गला घोंटू का लगवाना चाहिए. 1 महीने के बाद लंगड़े बुखार का टीका लगवाना चाहिए. वहीं बड़ी उम्र के पशुओं को हर 3 महीने बाद डीवॉर्मिंग करें.
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