नई दिल्ली. मिश्रित मत्स्यपालन यानि (Mixed fisheries) एक आधुनिक मत्स्यपालन तकनीक है. जिसमें तालाब की तमाम सतहों पर फिश फीड का पूरा उपयोग कर वैसी मछलियों के जीरा मछली संचित किये जाते हैं जिनके खान-पान की आदत एक दूसरे से अलग होती है. ये मछलियां एक दूसरे पर या एक दूसरे के खाने पर हमला न कर अपने-अपने पसंद की भोजन करती हैं. जिससे पूरे फिश फूड का इस्तेमाल होता है और उत्पादन के तौर ज्यादा मछलियां हासिल होती हैं. जिससे मत्स्य पालकों को सीधा फायदा होता है.
इस बारे में एक्सपर्ट कहते हैं कि मछली पालन में ये बेहद ही जरूरी है कि इकट्ठा की जाने वाली मछलियों की फिंगर्स की कुल संख्या, तमाम तरह की मछलियों के फिंगर्स का रेशियो, तालाब के जल तथा मिट्टी का प्रबंध और मछलियों में सप्लीमेंटरी फूड दिया जाए.
तीन स्तर पर किया जाता है मछली पालन
एक्सपर्ट के मुताबिक कार्प मछलियों की मिश्रित खेती देश में सबसे ज्यादा लोकप्रिय और विकसित सिस्टम है. इस सिस्टम में भारतीय मेजर कार्प की तीनों किस्मों-कतला, रोहू, मृगल तथा संभव हो तो विदेशी कार्प की भी तीनों किस्मों, सिल्वर कार्प ग्रास कार्प एवं कामन कार्प को साथ मिलाकर तीन स्तर पर मछली पालन किया जाता है. छोटे स्तर पर मछली पालन करने से हर पैदावार 3000 किलो प्रति हेक्टेयर मछली हासिल होती है. जबकि बीच के स्तर पर पालन करने पर 7000 और बड़े स्तर पर मछली पालन करने से 15000 किलोग्राम मछली का उत्पादन किया जा सकता है.
किस लेवल पर है ज्यादा फायदा
एक्सपर्ट कहते हैं कि हांलाकि बड़े स्तर पर खेती ज्यादा होती है लेकिन बीच के स्तर पर खेती ज्यादा उपयोगी होता है. क्योंकि इसमें जल संसाधनों के अनुकूलनतम उपयोग के साथ-साथ वातावरण की स्वच्छता भी बनी रहती हैं, साथ ही साथ लाभ भी अच्छा होता है. गौरतलब है कि इस वैज्ञानिक तकनीक के तमाम एक्टिविटी तथा प्रबंधन को सरल तरीके से करने के लिए तीन भागों में बांटा किया गया है.
चूने का इस्तेमाल कितना करें
बताते चलें कि इस तरह मछली पालन करने पर अगर मिट्टी एसिडिक हो और उसका पीएच मान 4.0 से 6.5 के बीच तो 2,000 से 1,000 किलो प्रति हेक्टेयर चूने का प्रयोग करते हैं चूने की पूरी मात्रा को 3-4 किस्तों में बांटकर 2-3 दिनों के अंतराल पर डालते हैं. वहीं चूने की अंतिम किस्त डालने के करीब 15 दिनों बाद तालाब में जीरा संचय करते हैं. या तो क्षारीय मिट्टी को मत्स्यपालन के लिए अनुकूल माना गया हैं, पर अत्याधिक क्षारिय मिट्टी मछलियों की उचित वृद्धि के लिए उपयुक्त नही हैं.
गोबर का करें छिड़काव
8.5 से अधिक पीएच वाली मिट्टी अत्याधिक क्षारिय हो जाती है. क्षारीयता कम करने के लिए 20-30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से पशुओं के गोबर तथा 5- 6 टन प्रति हेक्टेयर की दर से जिप्सम का प्रयोग किया जाता हैं. बलुई मिट्टी तल वाले तालाब में पानी का जमाव नही हो पाता है तथा इसकी उत्पादन क्षमता भी कम होती है. ऐसे में 20-30 टन हेक्टेयर की दर से गाय का गोबर आदि का प्रयोग कर मिट्टी को बेहतर बनाया जा सकता हैं. मिश्रित मत्स्य पालन में ये ध्यान दें कि कतला को बिकेट के साथ न डालें. बिकेट, सिल्वर, रेहू, नैनी के साथ डालें. कृतला मगल रेह साथ में डालें.
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