Home पशुपालन Green Fodder: इस चारा फसल से सालभर मिलता है पशुओं के लिए हरा चारा, यहां पढ़ें डिटेल
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Green Fodder: इस चारा फसल से सालभर मिलता है पशुओं के लिए हरा चारा, यहां पढ़ें डिटेल

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प्रतीकात्मक फोटो.

नई दिल्ली. पशुपालन में सालभर हरे चारे की जरूरत होती है. नेपियर घास जिसे हाथी घास भी की जाता है, इससे हरे चारे की कमी पूरी की जा सकती है. इस घास का ये फायदा है कि इसे एक बार लगाकर 4 से 5 साल तक हरा चारा हासिल किया जा सकता है. पशुपालक किसान को जब भी पशुओं के लिए हरे चारे की जरूरत हो तब इसे काटा जा सकता है. इस घास का ये भी फायदा है कि इससे सालभर तक चारा लिया जा सकता है. नेपियर घास में 55-60 फीसदी तक ऊर्जा तत्व और 8-10 परसेंट तक प्रोटीन होता है. यह पशुओं के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती है. नेपियर घास खिलाने से पशुओं में दूध उत्पादन बढ़ता है.

बिहार के पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग के मुताबिक नेपियर एक बेहतरीन चारा फसल है, जिसे रोडेसिया से भारत में 1912 में लगाया गया था. नेपियर 8.2 प्रतिशत प्रोटीन, कैल्शियम और फास्फोरस से भरपूर है, जो दुधारू जानवर के लिए बहुत ही उपयोगी है. यह बहुवर्षीय घास है जो 1500-1600 क्विंटल हरा चारा प्रति हेक्टेयर देती है जो अन्य चारा फसल के उत्पादन से कई गुना ज्यादा है. डेयरी व्यवसाय के लिए यह फसल बड़ा ही उपयोगी है.

उन्नत बीज: एनबी 21, पूसा जैन्ट एवं आईजीएफआरआई-10 एन.-5. ई.वी.-4 इसकी किस्में हैं. पूसा जैन्ट में सबसे ज्यादा प्रोटीन पाया जाता है.

मिट्टीः इसकी खेती बलुई दोमट से भारी दोमट अच्छी जल निकास और आर्गेनिक मिट्टी सबसे अच्छी होती है.

बुआई का समयः मार्च से अगस्त तक इसकी बुआई की जा सकती है.

बुआई की दूरीः कतार से कतार की दूरी 90 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 60 सेमी रखी जाती है.

बीज दरः 3 से 4 किलो ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर या 35 से 40 हजार जड़ युक्त जोड़ी (रूट स्लिप) प्रति हेक्टेयर की दर से दी जाती है.

खेत की तैयारीः खेत की अच्छी तरह जुताई कर हरेक जुताई के बाद पाटा चलाकर खेत की मिट्टी को हल्की और भुरभुरी बना लेते हैं खेत से खर-पतवार और फसलों के अवशेषों को चुनकर निकाल देनी चाहिए. बुआई से एक माह पूर्व 150-200 क्विंटल कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से खेतों में मिलाकर जुताई कर दी जानी चाहिए.

बुआईः इसकी बुआई गन्ने की तरह की जाती है. गन्ने की तरह कटिंग काट कर हरेक कटिंग में दो तीन आंख वाली (बड) नोड देखकर कटिंग कर लेते हैं. इस फसल में जमने लायक बीज बड़ी मुश्किल से बनते हैं. इसलिए इसकी बुआई गगेड़ी बनाकर (कटिंग से) ही की जाती है.

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