नई दिल्ली. पोल्ट्री कारोबार में बतख पालन करके भी कमााई की जा सकती है. बत्तख के अंडे में तीन तरह के मिनरल्स की पर्याप्त मात्रा मौजूद होती है. बत्तख के अंडे सेलेनियम का एक बेहतरीन स्रोत मानें जाते हैं. वहीं बत्तख के अंडे विटामिन डी भी प्रदान करते हैं. शरीर में विटामिन डी की कमी से डिप्रेशन और एंग्जाइटी जैसे मेंटल डिसऑर्डर का खतरा बना रहता है. ऐसे में बत्तख के अंडे इन कमियों को पूरा कर देते हैं. वहीं पोल्ट्री संचालक अंडे बेचकर कमाई कर सकते हैं. आज बात कर रहे हैं बिहार की एक ऐसी नस्ल की बत्तख की जो काफी फेमस है. इस प्रजाति की बत्तख में काफी मात्रा में प्रोटीन होता है. ग्रामीण इलाकों में किसान बत्तख पालकर कुपोषण की समस्या दूर कर सकते हैं.
मैथिली बत्तख को बेचकर युवा बेहतर आय भी कमा सकते हैं. मिथिला डक का पालन युवा किसान बेहतर व्यावसायिक के रूप से कर सकते हैं. इससे इस इलाके में रोजगार के अवसर भी विकसित होंगे.
मैथिली बत्तख बिहार की पहचान: मैथिली बत्तख बिहार की पहचान बन गया है. उत्तरी बिहार पानी बहुल इलाका होने के कारण यहां पर काफी संख्या में तालाब, पोखर और अन्य जलाशय हैं. इस इलाके में नदियों का भी जाल है. ऐसे में यहां मिथिला इलाके में काफी मछली पालन किया जाता है. इस बत्तख की पहचान के साथ इसके विकास और अंडे की क्षमता बढ़ाने पर ये बत्तख देशभर में पसंद किये जा रहे हैं.
यहां पाई जाती है ये बत्तख: ये बत्तख बिहार के पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज और मोतिहारी क्षेत्र में पाई जाती हैं. इस बत्तख का देसी नामकरण किया गया है. यह अपने आकर्षक रंग के जानी जाती है. इस बत्तख का वजन हल्का होता है और ये यहां के मौसम में जीवित रहने के लिए अनुकूल है. इस बत्तख की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहद अच्छी होती है और इसके इलाज में कम खर्च होता है. यही नहीं कम जमीन पर इन्हें पाला जा सकता है. इसका मीट औषधीय गुणों से परिपूर्ण माना जाता है. बिहार में करीब 50-60 हजार मैथिली बत्तख हैं.
डक की विशेषता: मैथिली बत्तख प्रजाति की बत्तख की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह अत्यंत कम लागत में पाली जाती है. उत्तरी बिहार के तालाबों में पाली जाने वाली इस प्रजाति के लिए मत्स्य पालकों एवं किसानों को विशेष खर्च नहीं करना पड़ता है. यहां पर मछली पालन के साथ किसान बत्तख पालन भी कर लेते हैं. इससे मछली के उत्पादन में भी वृद्धि होती है.
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