नई दिल्ली. पोल्ट्री में आज हर राज्य के किसान मेहनत करके अपनी इनकम में ग्रोथ कर रहे हैं. मुर्गी पालन में आज खेती से अधिक आमदनी ले रहे हैं. देश में मुर्गी पालन के लिए कई नस्लें पाली जा रही हैं, जिनसे अंडे और मीट दोनों से मुनाफा लिया जा सकता है. कुछ लोग देसी मुर्गियों का पालन करना पसंद करते हैं, तो कुछ ब्रॉयलर मुर्गे और मुर्गियों का पालन करते हैं. आज हम बात कर रहे हैं देश के एक ऐसे राज्य की, जहां पशुपालन बहुत बेहतर तरीके से किया जाता है. यहां कई प्रकार की नस्लें मुर्गी पालन के लिए पाली जाती हैं. उनमें से कुछ इस राज्य की पहचान हैं. ये हैं अंकलेश्वर और अरावली मुर्गी. आज हम आपको इस आर्टिकल के जरिए बताते हैं कि इन दोनों मुर्गियों के बारे में.
गुजरात में एक ओर डेयरी उद्योग की जबरदस्त डिमांड को पूरा किया जाता है. तो दूसरी तरफ यहां की मुर्गी भी पहचान बनाए हुए हैं. मुर्गी पालन अंडे और मीट दोनों के लिए किया जाता है. कुछ मुर्गियां साल में तीन सौ तक अंडे देती हैं, तो कुछ सौ तक ही सीमित रह जाती है. गुजरात में मुर्गी की एक नस्ल पहचान बनाए हुए हैं. ये अंकलेश्वर और अरावली मुर्गी.
अंकलेश्वर मुर्गी: अंकलेश्वर एक विशिष्ट मुर्गी नस्ल है, जो अलग की विशेषताएं रखती है और इसे मुर्गी पालन की दुनिया में अलग करती है. अंकलेश्वर मुर्गियां स्थानीय जलवायु और पर्यावरणीय परिस्थितियों में खुद को ढाल लेती हैं. इन मुर्गियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अच्छी होती है. ये जल्दी बीमार नहीं होती हैं. ऐसे में इनसे अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है. अंकलेश्वर अपने स्वादिष्ट मांस के लिए जानी जाती है. अंकलेश्वर मुर्गियों को उनके पोल्ट्री उत्पादों के समृद्ध स्वाद और गुणवत्ता के लिए सराहा जाता है, जो उन्हें मांस-केंद्रित संचालन के लिए एक अनुकूल विकल्प बनाता है. इन पक्षियों को अक्सर कम लागत की आवश्यकता होती है, जो उन्हें छोटे पैमाने के किसानों के लिए आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती है. पहले ये मुर्गी 80-90 अंडे देती थी, लेकिन, बेहतर आनुवंशिकी और स्वस्थ आहार के साथ, एक मुर्गी 64 सप्ताह की उम्र तक 140-150 अंडे दे सकती है.
अरावली मुर्गी: ये भी गुजरात की एक देशी नस्ल है जो मांस और अंडे दोनों के लिए उपयोगी है. यह मुख्य रूप से गुजरात के बनासकांठा, साबरकांठा, अरावली और महिसागर जिलों में पाई जाती है. ये मुर्गी साल में 150 से 180 अंडे तक देती है, ये जाना जाता है. अरावली मुर्गी के सुनहरा, भूरा, काला और सफ़ेद मिश्रित पंख होते है. काले दरांती के पंख हेते हैं. मटर के रंग की कंघी होती है और टांग लंबी होती है.
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