नई दिल्ली. भेड़ पालन बहुत ही फायदा पहुंचाने वाला कारोबार है. बकरी पालन के मुकाबले अगर आप भेड़ पालन करते हैं तो तीन तरह से कमाई कर सकते हैं. एक तो भेड़ से दूध और मीट का कारोबार तो किया ही जा सकता है. साथ ही ऊन भी प्राप्त होती है. ऊन बेचकर किसान अच्छी आमदनी कर सकते हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि भेड़ पालने वाले पालकों के लिए ये खबर अच्छी है कि इस वक्त भेड़ के मांस की डिमांड बहुत ज्यादा बढ़ गई है. सिर्फ देश ही नहीं विदेश में भी भेड़ की मांग की जा रही है. आज हम बात कर रहे है, एक ऐसी भेड़ की नस्ल की जो गुजरात की पहचान है. ये है पाटनवाड़ी भेड़.
भेड़ पालन सरल होता है. भेड़ों को मुर्गियों की तरह देखभाल की जरूरत नहीं होती है. भेड़ पालन सस्ता होता है और एक इन्हें महंगे आहार की जरूरत नहीं होती है. आइये जानते है गुजरात की इस नस्ल के बारे में.
पाटनवाड़ी भेड़ की पहचान: पाटनवाड़ी भेड़ गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्रों में पाई जाने वाली एक भेड़ नस्ल है. यह भेड़ ऊन के लिए जानी जाती है, जिसे कालीन ऊन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. ये एक बेहतरीन नस्ल की भेड़ मानी जाती है.
पाटनवाड़ी भेड़ की विशेषताएं: पाटनवाड़ी भेड़ मुख्य रूप से गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्रों के तटीय मैदानों में पाई जाती हैं. यह नस्ल सींग रहित होती है. हालांकि पाटनवाड़ी भेड़ की नस्ल को संरक्षित करने की आवश्यकता है, क्योंकि इसकी आबादी में गिरावट आ रही है. पाटनवाड़ी ऊन का उपयोग धबद जैसे पारंपरिक उत्पादों के लिए भी किया जाता है, लेकिन अब इसकी जगह बाजार से खरीदे गए कंबल का उपयोग किया जा रहा है. इसका उपयोग दूध और ऊन के उत्पादन के लिए भी किया जाता है.
सस्ता है भेड़ पालनः भेड़ पालन कम खर्च में शुरू हो जाता है. दरअसल भेड़ पालने के लिए महंगे घर या शेड़ की जरूरत नहीं होती है. इनका आहार भी काफी सरल होता है. भेड़ पालन सरल इसलिए है. क्योंकि भेड़ आकार में छोटी होती है. कम जगह में आराम से रह सकती हैं. जल्दी-जल्दी बड़ी हो जाती हैं. इतना ही नहीं यह मौसम के हिसाब से खुद को ढाल लेती हैं.पेड़, घास खिलाकर भेड़ पाली जा सकती हैं. इसको पालने से मुनाफा भी ठीक-ठाक हो जाता है. आंध्र प्रदेश की नेल्लोर भेड़ की नस्ल पालकर हर तरीके से लाभ लिया जा सकता है. इन भेड़ों से ऊन, मांस और दूध का बिजनेस किया जा सकता है.
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