नई दिल्ली. मुर्गियों को दाना देने में अगर थोड़ी भी देर हो जाती है तो अंडे का उत्पादन कम हो जाता है. पोल्ट्री आज देश में किसानों की सबसे तेजी से बढ़ती फील्ड में से एक है. आज फसलों का प्रोडेक्शन हर साल डेढ़ से दो फीसदी के रेसियो से बढ़ रहा है. अंडे और बॉयलर का 8 से 10 फीसदी की दर से बढ़ा है. बिजनेस के लिए कुछ चीजें जरूरी होती है, जिनमें प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि, शहरी आबादी और गिरती हुई मुर्गियों की कीमत, डिजाइन और संचालन में बदलाव आया है. वह भी बिजनेस को बढ़ावा देता है. आज पोल्ट्री में कई तरह की मुर्गियों की डिमांड है, ऐसी मुर्गियां पोल्ट्री बिजनेस को फायदा पहुंचाती हैं, जो अंडा देने में नंबर वन हों. आपको बता दें कि मुर्गी पालन में दो तरह के अंडों का रंग होता है. भूरा और सफेद अंडा. आइये जानते हैं इसके बारे में अधिक जानकारी.
ईसा व्हाइट, लेहमैन व्हाइट, बोवंच व्हाइट, निकचिक, हाय सेक्स व्हाइट, सीवियर व्हाइट, जैसे कुछ सफेद अंडे देने वाली मुर्गियां हैं. किसानों ने आज हाई लाइन जैसे पक्षियों का पालन भी शुरू किया है, जिससे अच्छी इनकम हो रही है. दो तरीके की मुर्गी होती हैं. सफेद अंडा देने वाली मुर्गी छोटे आकार की होती है औ कम खाती है. इसके अंडे के खोल का रंग सफेद होता है.
भूरा अंडा देने वाली मुर्गी: भूरे रंग का अंडा देने वाली मुर्गी में आजकल ईसा ब्राउन, हाय सेक्स ब्राउन, लेमन ब्राउन, गोल्ड लाइन बेबीलोन, हार्वर्ड ब्राउन आदि शामिल हैं. भूरा अंडा देने वाली मुर्गियां सफेद अंडा देने वाली मुर्गियों की तुलना में कुछ बड़ी होती हैं. ये मुर्गियां अधिक खाना खाती हैं. अन्य लेयिंग ब्रीड की तुलना में यह बड़े अंडे देती हैं. इनके अंडों का खोल भूरे रंग का होता है.
ढाई सौ अंडे तक देती हैं मुर्गी: पोल्ट्री में कई नस्लें ऐसी है, जो अच्छे अंडे देती हैं. दाओथिगीर मुर्गी एक मजबूत और अच्छी नस्ल है जो मांस और अंडे दोनों के लिए बेहतर है और यह बैकयार्ड मुर्गी पालन के लिए एक अच्छी पसंद है. दाओथिगीर मुर्गियां एक अच्छी अंडा उत्पादक हैं. एक साल में करीब 230-240 अंडे दे सकती हैं.
वनराजा नस्ल एक ऐसी नस्ल है, जिससे आप अच्छे अंडे प्राप्त कर सकते हैं. वनराजा में वार्षिक अंडे देने की क्षमता 140-150 होती है. ग्रामप्रिया एक अधिक अंडे देने वाली नस्ल हैं. जिसने पूर्वोत्तर राज्यों में 500 दिन में 170-200 अंडे दिए. विकसित कुक्कुट नस्ल, विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्र में भी अपनी उत्पादकता बनाए रखने और हर जलवायु क्षेत्र में सहज रूप से ढल जाने के कारण देश के प्रत्येक भाग में इसे किसानों द्वारा अपनाया गया है.
Leave a comment