नई दिल्ली. मुर्गियों को बीमारियों से बचाना बेहद ही जरूरी होता है. नहीं तो परेशानी बढ़ जाती है. अगर मुर्गियों में बीमारी आ जाती है तो फिर उनके मरने का खतरा बहुत तेजी से बढ़ता है. एक मुर्गी दूसरी और दूसरी तीसरी और इसी तरह से सभी मुर्गियां बीमार एक-एक करके बीमार हो जाती हैं. नतीजे में मुर्गियों में मृत्युदर दिखाई देती है. इसलिए बेहद ही जरूरी है कि मुर्गियों को बीमारियों से बचाया जाए, ताकि पोल्ट्री फार्मिंग (Poultry Farming) के काम में खुद को नुकसान से बचाया जा सके.
बिहार सरकार के पशु एवं मत्स्य संसाधन (Department of Animal and Fishery Resources) के एक्सपर्ट ने लाइव स्टॉक एनिमल न्यूज (Livestock Animal News) को बताया कि मुर्गियों में आमतौर पर पांच तरह की बीमारी होती है. हालांकि इस आर्टिकल में हम मुर्गियों की दो बैक्टीरियल बीमारी के बारे में बताने जा रहे हैं. जिसके लक्षण और उपचार आदि के बारे में यहां जानकारी देंगे.
मुर्गियों को होती हैं ये पांच बीमारियां
वायरल रोग, जैसे रानीखेत, गम्बोरों, फाउल पॉक्स आदि. बैक्टीरियल रोग – जैसे पुलोरम, फाउल टायफाइड और कोलिबैसिलॉसिस आदि. कीड़े से होने बीमारी – जैसे कोक्सिडियोसिस और कीड़े लगना आदि.
फंगल रोग, जैसे एस्परजिलोसिस (Aspergillosis) और पोषण संबंधी रोग जैसे विटामिन की कमी, कैल्शियम फॉस्फोरस की कमी से होने वाली समस्याएं.
पुरोलम बीमारी
इसके लक्षण छोटे चूजों में सफेद दस्त, पंख बिखरे हुए, अचानक मृत्यु आदि हैं.
पशु चिकित्सक की सलाह से Furazolidone, Enrofloxacin, Sulpha दवाएं देकर इलाज कर सकते हैं.
बीमार मुर्गियों को तुरंत अलग करके, केवल “पुलोरम-टेस्टेड” फार्म से चूजे खरीदें जिससे रोकथाम हो सकेगी.
फाउल टायफाइड रोग
इस बीमारी के लक्षण में वयस्क मुर्गियों में सुस्ती, भूख न लगना, अंडा उत्पादन घट जाना आदि हैं.
पशु चिकित्सक की सलाह से Ciprofloxacin Enrofloxacin जैसी दवाएं देकर इसका इलाज कर सकते हैं.
मुर्गी फार्म की साफ-सफाई, चूहों और मच्छरों से बचाव आदि करके रोकथाम की जा सकती है.
निष्कर्ष
मुर्गियों को बैक्टीरियल बीमारियों से बचाने के लिए जरूरी एहतियाती कदम उठाए जाने चाहिए, ताकि फार्मर खुद को नुकसान से बचा सकें.
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