नई दिल्ली. मार्डन पोल्ट्री फार्मिंग की जरूरतों को पूरा करने के लिए, अधिक अंडे और मांस का उत्पादन के लिए सूटेबल मुर्गियों का विकास किया गया. हालांकि कई बीमारियों जैसे संक्रमण बर्सल रोग, न्यू कैसल रोग, मैरक्स्स रोग आदि की वजह से उत्पादन पर बेहद खराब असर पड़ा. क्योंकि ऐसी मुर्गियां इन बीमारियों के प्रति बहुत सेंसेटिव होती हैं और जल्दी से बीमार पड़ जाती हैं. इसलिए ये खास करके रूरल एरिया में पोल्ट्री फार्मिंग के लिए आइडियल नहीं हैं. क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में बीमारियों को लेकर वो सुविधाएं नहीं हैं, जो शहरों में होती हैं.
इसके अलावा, स्थानीय लोग ऐसे पक्षी लेना पसंद करते हैं जो दिखने में स्थानीय मुर्गियों जैसी हो और स्थानीय पक्षी की तुलना में बेहतर उत्पादन करती हो. इन बातों को ध्यान में रखकर भारत में पहली बार कुक्कुट विज्ञान विभाग, पशु चिकित्सा महाविद्यालय, बैंगलोर में वैज्ञानिकों द्वारा “गिरिराजा” नाम की कृत्रिम रंग वाली दोहरे उद्देश्य वाली नस्ल विकसित की और 1989 के दौरान सामने लाई गई. यह भारत में ग्रामीण कुक्कुट पालन क्षेत्र में बड़ा योगदान है और ग्रामीण किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय भी है.
ज्यादा अंडे और मांस उत्पादन की है क्षमता
गिरीराजा को प्रसिद्ध विदेशी ब्रॉयलर नस्लों का उपयोग करके विकसित किया गया है. इस नस्ल ने घर-आंगन पालन और अपने आपको साबित किया है. विशेषता की बात की जाए तो स्थानीय पक्षियों के समान पक्षति का रंग और विन्यास दिखता है. कई रोगों और रोगजनक स्थितियों के लिए बेहतर है. स्थानीय पक्षियों के समान रंग रूप होता है. कई रोगों से लड़ने के लिए बेहद ही असरदार है. अलग-अलग मौसम में खुद को ढाल लेन की क्षमता होती है. स्थानीय पक्षियों की तुलना में शारीरिक भार और अंडे उत्पादन का प्रदर्शन करीब तीन गुना अधिक है.
कैसे करें मैनेजमेंट
एक दिवसीय गिरिराजा मादाओं को 3 सप्ताह की अवधि के लिए ब्रूडिग की आवश्यकता होती है. चूंकि, वे ब्रूडी मुर्गियों की देखभाल में नहीं होते हैं. चूजों को एक छोटे झोपड़ी के कोने तक सीमित किया जाना चाहिए. कृत्रिम रौशनी उपलब्ध किया जाना चाहिए, जो 1 से 1.5 फीट की ऊंचाई पर लटका हो. हीट के लिए लिए, स्थानीय रूप से उपलब्ध बांस की टोकरी का उपयोग किया जा सकता है. पहले तीन सप्ताह की अवधि के दौरान, चूजों को पिसी हुई मक्का, मूंगफली का केक, टूटे हुए चावल, रागी और नमक के मिश्रण के साथ बची हुई हरी पत्तेदार सब्जियां या खाद्य उपलब्ध कराना चाहिए. इसके बाद मुर्गियों को अनाज, हरी पत्तेदार सामग्रियां, प्राकृतिक रूप से उपलब्ध कीड़े और दीमक आदि देना चाहिए.
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