नई दिल्ली. मुर्गी पालन को ऐसा व्यवसाय माना जाता है, जिसमें कम पूंजी, कम समय और कम मेहनत में शुरू किया जा सकता है. अगर मुर्गी पालन व्यवसाय सही ढंग से कर लिया जाए तो इससे काफी अच्छी इनकम हासिल की जा सकती है.मगर, ये भी अगर आपने थोड़ी सी गलती कर दी तो नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. इसलिए बेहतर है कि मुर्गी पालन करने की सोच रहे हैं तो उससे जुड़ी कुछ बातों की जानकारी जरूर कर लेनी चाहिए. अगर कम जोखिम में मुर्गी फार्म खोलने की सोच रहे हैं तो सबसे पहले मुर्गी के घर कैसा हो इसकी नॉलेज होना बेहद जरूरी है. आप मुर्गी फार्म खोलने की सोच रहे हैं तो ये खबर आपकी मदद कर सकती है. इसलिए आखिर तक खबर के साथ खुद को जोड़े रखें.
अगर आपने सिस्टम के साथ मुर्गी पालन किया तो ये मुर्गी पालन बेहद फायदेमंद सौदा है. अगर लापरवाही कर दी तो ये आपको नुकसान भी पहुंचा सकती है. इसलिए मुर्गी पालन में सबसे पहले उसके शेड के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी है. अगर शेड ठीक नहीं है तो मुर्गी उसमें ठीक से नहीं पल सकतीं. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने मुर्गी पालन के लिए बेहतरीन टिप्स दिए हैं.
ऐसा होना चाहिए मुर्गी का घर
–मुर्गी घर का लम्बवत यानी पूर्व से पश्चिम दिशा में होना चाहिए.
–पूर्व से पश्चिम की ओर मुंह होने से सूर्य के प्रकाश से गर्मी कम से कम पड़ेगी.
–दो मुर्गी घरों के बीच कम से कम 15 मीटर की दूरी होनी चाहिए.
–दो मुर्गी फार्मों के बीच कम से कम 1 से 2 किलोमीटर की दूरी होनी चाहिए.
–हैचरी इकाई एवं मुर्गी घर के बीच कम से कम 500 फीट की दूरी होनी चाहिए.
लकड़ी का बुरादा है अच्छा विकल्प
विशेषज्ञों के मुताबिक बिछावन में कई चीजों का उपयोग किया जा सकता है लेकिन बिछावन हमेशा सूखी और फंगस से मुक्त होनी चाहिए. इसमें सोखने की क्षमता अच्छी होनी चाहिए. इसके तौर पर चावलों का छिलका और सस्ता और आसानी से उपलब्ध हो जाता है. यह बेहतर हो सकता है और चूजों के लिए आरामदायक भी होता है. लकड़ी के बुरादे को भी बिछावन के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन सूखा बुरादा ही उपयोग में लाना चाहिए और इसमें फंगस या लकड़ी के मोटे टुकड़े नहीं होने चाहिए. अगर मजबूरी है तो आप गेहूं यह धन की सूखी बड़ी घास भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
रेत का इस्तेमाल कभी न करें
चावलों का सूखा छिलका सबसे बेहतर माना जाता है. कुछ पोल्ट्री फार्म में बिछावन के तौर पर रेत का उपयोग भी करते हैं. यह तरीका गलत माना जाता है. कभी भी रेत का उपयोग बिछावन के तौर पर नहीं करना चाहिए. सर्दी में पोल्ट्री फार्म पर अमोनिया गैस बनने की समस्या होती है. इसलिए सर्दियों में बिछावन तीन इंच तक देने से अमोनिया कम बनती है. अमोनिया के स्तर को कम करने के लिए बिछौना में वजन के हिसाब से 5 फीसदी फिटकरी मिलने से अमोनिया कम बनती है. फिटकरी वजन के हिसाब से मिलने पर अमोनियम 70% तक काम हो जाती है और बिछावन बैक्टीरिया का प्रभाव भी काफी कम हो जाता है.
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