नई दिल्ली. रानीखेत यानि न्यूकेसल डिजीज, यह बीमारी सभी उम्र की मुर्गियों व टर्की में समान्य रूप से पाई जाती है. यह एकदम तेजी से फैलने वाली, भयंकर छूतदार बीमारी है. जिसमें नवर्स सिस्टम व श्वसन तंत्र दोनों प्रभावित होते हैं. इस बीमारी की वजह जानें तो यह रोग वाइस (मिक्सो वायरस) से होता है. इस बीमारी का इन्क्यूबेशन पीरियड (रोग के वायरस शरीर में प्रवेश के समय से लेकर रोग के लक्षण स्पष्ट होने तक का समय) 5 से 7 दिन होता है. आमतौर पर ये हवा के जरिए फैलने वाला वायरस है. जबकि कई बार बीमार मुर्गियों के साथ स्वस्थ पक्षी रखने पर भी ये बीमारी हैल्दी मुर्गियों को अपनी चपेट में ले लेती है.
वहीं मृत मुर्गी को खुले में छोड़ने से इस बीमारी का खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है. बीमार पक्षियों के आहार व पानी के बरतनों एवं संक्रमित लिटर द्वारा, मुर्गी फार्म के पास रोगी जंगली पक्षियों द्वारा, मुर्गियों की देखभाल करने वाले इंसानों तथा आने वाले लोगों के द्वारा, बीमार पक्षियों की बीट, आंसू, नाक एवं मुंह से निकलने वाले स्राव से भी ये बीमारी फैल जाती है.
बीमारी के हैं चार फार्म
विरूलेंट फार्म या उग्र रूप (एशियन टाईप. इस अवस्था में मृत्यु दर 100 फीसद तक हो सकती है. बीमारी 3-4 दिन तक रहती है जबकि कभी-कभी एक ही दिन में सब मुर्गियों मर जाती हैं. इस अवस्था में तेज बुखार होता है. मुर्गियों को सांस लेने में दिक्कत होती है और मुंह खोलकर सांस लेती हैं और सांस के साथ विशेष आवाज होती है. जबकि असामान्य अंडे एवं अंडा उत्पादन में कमी हो जाती है. मिसोजेनिक फार्म या अपेक्षाकृत कम हानिकारक रूप (अमेरिकन टाईप). इस कंडीशन में मृत्यु दर 5-20 फीसदी तक होती है. वहीं मुर्गियों में खांसी आना, सांस लेने में कठिनाई होना, उल्टा चलना, हरे रंग के दस्त होना, सिर लटकाकर दोनों टांगों के बीच रखना आदि लक्षण देखे जाते हैं. इससे अंडे के उत्पादन में भी कमी होती है. पंख व पैरों में लकया हो सकता है. लेंंटोजनिक फार्म या कम प्रभावी रूप इस अवस्था में मृत्युदर बहुत कम होती है. हल्के सांस रोग के लक्षण दिखाई देते हैं. अंडा उत्पादन में कमी हो जाती है. जबकि चौथा एसिम्प्टोमेटिक या अलक्षणिक फार्म है. इसमें कम उम्र वाले पक्षी मिलते हैं.
नहीं है कोई उपचार पर ऐसे बचाव कर सकते हैं
पोल्ट्री एक्सपर्ट कहते हैं कि मुर्गियों को बीमारियों से बचाने के लिए वैक्सीनेशन किया जाना चाहिए. ऐसा करने से मुर्गियों को न तो बीमारी लगेगी और न ही उनकी मौत होगी. वहीं रानीखेत रोग का कोई उपचार नहीं है इसलिए वैक्सीनेशन (टीकाकरण) आवश्यक है. आर.डी. की रोकथाम के लिये एफ, टाईप, लसोटा, आरबी और एन.डी. किल्ड आदि वैक्सीन का उपयोग किया जाता है. लेयर एवं ब्रीडिंग स्टॉल की मुर्गियों में अंडे शुरू होने के समय एनडी किल्ड वैक्सीन का उपयोग रोग की रोकथाम के लिए बहुत उपयोगी है. साथ ही 7 दिन, 28 दिन व 10 सप्ताह की उम्र में भी टीकाकरण किया जाना चाहिये. ब्रायलर में 7 दिन की उम्र में आरडी का टीकाकारण किया जाना पर्याप्त है.
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