नई दिल्ली. मुर्गी पालन देश में आय का एक बेहतरीन जरिया बनता जा रहा है. इस व्यवसाय से लाखों लोग जुड़े हुए हैं और न सिर्फ मोटी कमाई कर रहे हैं बल्कि रोजगार भी दे रहे हैं. वैसे तो मुर्गी पालन का व्यवसाय बहुत ही फायदेमंद है लेकिन जब इन्हें बीमारियां लगने लगती हैं तो ये मुर्गी पलकों को बहुत नुकसान पहुंचाता है. इसलिए मुर्गी पालन व्यवसाय में मुर्गी पालक को मुर्गियों में होने वाली बीमारी के बारे में हमेशा ही जानकारी होना चाहिए और उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि इसका इलाज क्या है और इस बीमारी मुगियों को कैसे बचा सकते हैं. आज उन्हीं बीमारियों में से एक रानीखेत बीमारी के बारे में यहां जिक्र किया गया है. आईए जानते हैं. इस बीमारी के बारे में इससे क्या नुकसान है. इसका कैसे इलाज किया जा सकता है.
सबसे खतरनाक बीमारी है ये
पोल्ट्री एक्सपर्ट कहते हैं कि रानीखेत मुर्गियों में होने वाली सबसे खतरनाक बीमारियों में से एक है. या संक्रामक रोग है, जो मुर्गी पालन के लिए सबसे ज्यादा घातक साबित होता है. इससे मुर्गियों को सांस लेने में परेशानी होती है और उनकी मृत्यु दर बहुत ज्यादा हो जाती है. इसके अलावा मुर्गियों में ये संक्रमण मुर्गियों के अंडे को भी प्रभावित करता है. इससे अंडा उत्पादन कम होता है. यह रोग पैरामाइक्सो वायरस के कारण होता है.
ये हैं इस बीमारी के लक्षण
रानीखेत रोग के लक्षणों की बात की जाए तो मुर्गियों को सांस लेने में परेशानी होती है. मुर्गियों को तेज बुखार भी होता है. अंडे के उत्पादन में गिरावट देखने को मिलती है. मुर्गियां हरे रंग की बीट करने लगती हैं. कभी-कभी पंख और पर लकवा ग्रस्त भी हो जाती हैं. जिससे उन्हें चलने वगैरह में भी दिक्कत का सामना करना पड़ता है.
कोई पुख्ता इलाज नहीं है
अगर इसके बचाव की बात की जाए तो पोल्ट्री एक्सपर्ट कहते हैं कि रानीखेत बीमारी का कोई पुख्ता इलाज नहीं मिल पाया है. हालांकि टीकाकरण के जरिए इसे बचाव संभव है. इसमें आर 2 बी और एनडी किल्ड जैसे टीके लगाए जाते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक मुर्गियों को 7 दिन 28 दिन और 10 हफ्ते में टीका देना सही रहता है. जिससे रानीखेत बीमारी से बचा जा सकता है.
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