Home पशुपालन FMD बीमारी के क्या हैं लक्षण, इलाज और बचाव का तरीका भी पढ़ें यहां
पशुपालन

FMD बीमारी के क्या हैं लक्षण, इलाज और बचाव का तरीका भी पढ़ें यहां

milk production
गाय-भैंस की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. मुंहपका और खुरपका बीमारी के लक्षणों की बात की जाए तो बीमार पशु को 104-106 डिग्री फारेनहाइट तक बुखार हो जाता है. ऐसे में पशु खाना-पीना व जुगाली करना बन्द कर देता है. दूध का उत्पादन कम हो जाता है. मुंह से लार बहने लगती है तथा मुंह हिलाने पर चपचप की आवाज आती है. इसी कारण इसे चपका रोग भी कहते हैं. तेज बुखार के बाद पशु के मुंह के अंदर, गालों, जीभ, होंठ, तालू व मसूड़ों के अंदर, खुरों के बीच तथा कभी-कभी थनों व अयन पर छाले पड़ जाते हैं. ये छाले फटने के बाद जख्म का रूप ले लेते हैं. जिससे पशु को बहुत दर्द होने लगता है. मुंह में घाव व दर्द के कारण पशु खाना-पीना बन्द कर देता है जिससे वह बहुत कमजोर हो जाता है.

वहीं खुरों में दर्द के कारण पशु लंगड़ा चलने लगता है. गर्भवती मादा में कई बार गर्भपात भी हो जाता है. नवजात बच्छे या बच्छियां बिना किसी लक्षण दिखाए मर जाते हैं. लापरवाही होने पर पशु के खुरों में कीड़े पड़ जाते हैं तथा कई बार खुरों के कवच भी निकल जाते हैं. हालांकि व्यस्क पशु में मृत्यु दर कम (लगभग १० फीसदी) है लेकिन इस रोग से पशु पालक को आर्थिक नुकसान बहुत ज्यादा उठाना पड़ता है. दूध देने वाले पशुओं में दूध के उत्पादन में कमी आ जाती है. ठीक हुए पशुओं का शरीर खुरदरा तथा उनमें कभी कभी हांफने वाला रोग हो जाता है. बैलों में भारी काम करने की क्षमता खत्म हो जाती है.

क्या है इस बीमारी का इलाज
उपचार की बात की जाए तो इस रोग का कोई निश्चित उपचार नहीं है लेकिन बीमारी की गम्भीरता को कम करने के लिए लक्षणों के आधार पर पशु का उपचार किया जाता है. रोगी पशु में सेकेन्डरी संक्रमण को रोकने के लिए उसे पशु चिकित्सक की सलाह पर एन्टीबायोटिक के टीके लगाए जाते हैं. मुंह व खुरों के घावों को फिटकरी या पोटाश के पानी से धोते हैं. मुंह में बोरो गिलिसरीन तथा खुरों में किसी एन्टीएप्टिक लोशन या क्रीम का प्रयोग किया जा सकता है.

कैसे करें बीमारी से बचाव, पढ़ें यहां

  1. इस बीमारी से बचाव के लिए पशुओं को पोलीवेलेंट वैक्सीन वर्ष में दो बार जरूर लगवाएं. बच्छे और बच्छियों में पहला टीका 1 माह की उम्र में, दूसरा तीसरे माह की उम्र और तीसरा 6 माह की उम्र में लगवाएं. इसके बाद टाइम टेबल के मुताबिक लगवाना चाहिए.
  2. बीमारी हो जाने पर रोग ग्रस्त पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए.
  3. बीमार पशुओं की देखभाल करने वाले व्यक्ति को भी स्वस्थ पशुओं के बाड़े से दूर रहना चाहिए.
  4. बीमार पशुओं के आवागमन पर रोक लगा देना चाहिए.
  5. रोग से प्रभावित क्षेत्र से पशु नहीं खरीदना चाहिए.
  6. पशुशाला को साफ-सुथरा रखना चाहिए.
  7. इस बीमारी से मरे पशु के शव को खुला न छोड़कर गाड़ देना चाहिए.

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

livestock animal news, Animals in rain, Disease in animals, Animal husbandry, Animal enclosure, Animal news, CRRG, Flood, Flood news, Green fodder, Taj Trapezium Zone, TTZ, National Green Tribunal, NGT, Taj Mahal, Supreme Court
पशुपालन

Animal Husbandry: जानवरों को है इस खतरनाक बीमारी का खतरा, यूपी के 25 जिले हाई रिस्क जोन में

इसलिए जानवरों को बीमारियों से बचाना बेहद ही जरूरी होता है. आइए...

गर्मी पशु की इम्युनिटी को प्रभावित करती हैं. बकरियों को भी सर्दी और जुकाम होने लगता है, जैसे इंसान को होता है. इनको भी दस्त लग सकते हैं. यदि आपने वैक्सीन नहीं लगवाई है तो तुरंत ही वैक्सीन जानवरों को दें.
पशुपालन

Goat Farming: मार्च के महीने में कैसे करें बकरियों की देखभाल, यहां जानिए एक्सपर्ट के टिप्स

गर्मी पशु की इम्युनिटी को प्रभावित करती हैं. बकरियों को भी सर्दी...