नई दिल्ली. मुर्गी पालन करके बहुत से किसान अपनी आय को बढ़ा रहे हैं. या यूं कहा जाए कि मुर्गी पालन किसानों की आय का प्रमुख जरिया बनता जा रहा है तो गलत नहीं होगा. किसान अपने आंगन में ही इस व्यवसाय को शुरू करके अच्छी खासी आमदनी कमा सकते हैं. जबकि इस व्यवसाय में ज्यादा निवेश करने की जरूरत नहीं होती है. जबकि अच्छी खासी इनकम हो जाती है. एक्सपर्ट की मानें तो ज्यादातर गांव में मुर्गी पालन इस बात को ध्यान में रखकर किया जाता है कि उनसे मांस भले ही कम मिले लेकिन अंडे ज्यादा मिलें.
इसके लिए किसान देसी नस्ल की मुर्गियों को पलते हैं. इन देसी नस्ल की मुर्गियों में कई ऐसी भी नस्ल होती है जिनको पालकर किसानों को ज्यादा फायदा हो सकता है. उन्हीं नस्ल में से एक है रेनबो रोस्टर नस्ल की मुर्गी. इस नस्ल की मुर्गी की खासियत ये है कि ये अंडों के उत्पादन के लिए तो ठीक है ही साथ ही ये मीट के लिए भी अच्छी मानी जाती है.
क्या है रेनबो रोस्टर की पहचान
किसानों की आय बढ़ती रहे उन्हें मुर्गी पालन में सफलता मिलती रहे इसके लिए रेनबो रोस्टर नस्ल को बेहतर माना गया है. विशेषज्ञों के माने तो अंडे के उत्पादन के अलावा ये नस्ल शरीर के वजन में भी अच्छी होती है. रेनबो रोस्टर में एक व्यस्क मुर्गी का वजन 204 से 206 किलोग्राम तक होता है. यह हर साल औसतन 120 अंडों का उत्पादन करती है. किसी लोकल मुर्गी की तुलना में यह काफी ज्यादा परिपक्व होती है. एक स्थानीय मुर्गी के शरीर का वजन 1.2 और 1.5 किलोग्राम तक होता है. जबकि वे हर साल वह 50 से 60 अंड दे सकती हैं.
150 अंडों का उत्पादन
एक्सपर्ट रेनबो रोस्टर नस्ल के बारे में कहते हैं कि इस नस्ल की खासियत यह है कि एक साथ दो लक्ष्य को हासिल करने में सफल रहती हैं. रेनबो रोस्टर स्थानीय मुर्गी पालन की तुलना में ज्यादा उत्पादन देती है. 6 महीने के बाद रेनबो रोस्टर मुर्गी का वजन डेढ़ किलोग्राम हो जाता है. वहीं एक वन राज मुर्गी हर साल 150 अंडों का उत्पादन कर पाती है. जबकि स्थानीय नस्ल में हर साल 60 अंडों का ही उत्पादन होता है.
किस तरह की मुर्गियों चुनें
विशेषज्ञों का कहना है कि मुर्गी पालन के लिए हमेशा ही ऐसी मुर्गियों को चुना जाना चाहिए जो ज्यादा बड़े अंडे देने वाली हों. कई क्षेत्रों में अधिकांश आदिवासी परिवारों की तरफ से अस्थाई तौर घर के आंगन में मुर्गी पालन का बिजनेस किया जाता है. ज्यादातर किसान देसी नस्लों को पालने में यकीन करते हैं. यह नस्ल अंडे और मांस के उत्पादन में कमजोर होती हैं. इस बात को ध्यान में रखते हुए ही किसानों को आय में इजाफा हो और उन्हें इस बिजनेस में ज्यादा फायदा मिले इसके लिए उन्नत नस्ल की शुरुआत की गई है.
Leave a comment