नई दिल्ली. हमारे देश में दूध देने वाले पशुओं की संख्या दूसरे देशों के मुकाबले ज्यादा है. लेकिन प्रति पशु दूध उत्पादन के मामले में हम काफी पीछे हैं. एनिमल एक्सपर्ट के मुताबिक इसके पीछे कई कारण हैं. क्लाइमेट चेंज के चलते ये उत्पादन अभी और घटने की उम्मीद है. लेकिन बफैलो साइंटिस्ट का कहना है कि जल्द ही एक ऐसा काम होने जा रहा है. जिससे हर एक भैंस का दूध उत्पादन करीब चार गुना तक हो जाएगा. बिना किसी परेशानी के भैंस बच्चा भी लगातार देगी. और इसके लिए पशुपालक को हर रोज बस एक छोटा सा काम करना होगा.
इसके बाद पशुपालन से जुड़ी सभी तरह की परेशानियां कम हो जाएंगी. पशुपालन पर आने वाली लागत भी कम हो जाएगी. और ये सब मुमकिन होगा सेंट्रल बफैलो रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआईआरबी), हिसार और आईआईटी, रुढ़की की रिसर्च से. इस रिसर्च में बिल गेट्स फाउंडेशन संस्था मदद कर रही है.
ऐसे बढ़ेगा भैंस का दूध और बच्चेत का उत्पादन
सीआईआरबी के प्रिंसिपल साइंटिस्टर डॉ. अशोक बल्हारा का कहना है कि इसी साल एक अप्रैल से हमारी रिसर्च शुरू हुई है. इस रिसर्च के तहत हम एक ऐसी डिवाइस तैयार करेंगे जो भैंस के यूरिन की जांच करेगी. साथ ही पशुपालक के मोबाइल में हमारे द्वारा तैयार की गई एक ऐप या सॉफ्टवेयर होगा. जब मोबाइल और डिवाइस दोनों एक-दूसरे की रेंज में होंगे तो डिवाइस द्वारा यूरिन का दिए जाने वाला डाटा उस सॉफ्टवेयर पर अपडेट हो जाएगा. इस डाटा को एक्सपर्ट पढ़ेंगे और देखने के साथ ही पशुपालक को पशु के संबंध में एडवाइजरी जारी कर दी जाएगी.
भैंस का यूरिन चार विषयों पर देगा डाटा
डॉ. अशोक ने बताया कि जब डिवाइस से भैंस के यूरिन की जांच की जाएगी तो वो चार खास विषयों पर डाटा देने का काम करेगा. ये चार विषय हैं भैंस का खानपान, हैल्थो, व्येवहार और भैंस का गर्भकाल. अगर भैंस को रोजाना खिलाए जा रहे हरे-सूखे चारे और मिनरल्स में से किसी एक में भी कोई कमी है तो वो जांच में आ जाएगा और एक्सपर्ट बता देंगे कि भैंस को खाने में कब, क्याअ और कितना देना है. अगर भैंस का व्यवहार बदल रहा है और वो सामान्य व्यवहार नहीं कर रही है तो ये भी इस डिवाइस से पता चल जाएगा. भैंस की हैल्थ् से जुड़े सारे अपडेट भी इस डिवाइस के माध्यैम से मिलते रहेंगे. साथ ही भैंस में कुछ सेंसर चिप भी लगाई जाएंगी. ये रिसर्च करीब पांच साल चलेगी और इसमे से दो साल भैंसों पर किए जाने वाले ट्रॉयल के भी शामिल रहेंगे. ये देश में अपने तरह की पहली रिसर्च है और विश्वि में भी अभी तक इस स्तर पर ये रिसर्च शुरू नहीं हुई है.
Leave a comment