Home पशुपालन Disease: बरसात से लेकर ठंड के मौसम तक भेड़-बकरी में रहता है इस बीमारी का खतरा, पढ़ें लक्षण और इलाज
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Disease: बरसात से लेकर ठंड के मौसम तक भेड़-बकरी में रहता है इस बीमारी का खतरा, पढ़ें लक्षण और इलाज

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भेड़ और बकरी की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. ब्ल्यू टंग को देशी भाषा में नीली जिल्ह्वा नाम से भी जाना जाता है. इस बीमारी के बारे में कहा जाता है कि ये एक वायरस जनित रोग है. हमारे देश में यह बकरियों का प्रमुख उभरता रोग है. यह आमतौर पर भेड़ों की बीमारी कही जाती है. ये बीमारी मच्छरों की प्रजाति क्यूलीकोइजिस द्वारा रोगी बकरी से स्वस्थ बकरियों में काफी तेजी के साथ फैलती है. जिसमें बुखार व मुंह/नाक की बलगम वाली झिल्ली में खून की दौरान बहुत बढ़ जाती है. इसका मतलब ये है कि ये इनफ्लेमेशन हो जाता है. होठ, मुंह के अंदर के हिस्सों जैसे जुबान, डेन्टल पेड पर सूजन आ जाती है.

एक्सपर्ट का कहना है कि वैसे तो ये भेड़ों का तीव्र संक्रामक रोग है. हालांकि बड़ी संख्या में बकरियों को भी प्रभावित करता है. वहीं अन्य मवेशी बहुत कम प्रभावित होते हैं. इस रोग की ये भी खासियत है कि एक एक वर्ष की उम्र वाली भेड़ें और बकरियां इसके चपेट में आ जाती हैं. यही वजह है कि इन्हें ज्यादा संवेदनशील माना जाता है. वहीं दूध पीते मेमनों में कोलोस्ट्रम की वजह से इस बीमारी से लड़ने की क्षमता ज्यादा होती है. एक्पसर्ट का कहना है कि ये बीमारी खासतौर पर बरसात के मौसम में और इसके बाद अक्टूबर, नवम्बर और दिसम्बर के महीनों में होती है.

क्या हैं इस बीमारी के लक्षण
मवेशियों का उदास रवैया और भोजन से दूर रहना, नाक और मुंह की श्लेष्मा झिल्ली का लाल होना और सूजन. नाक और मुंह से बड़ी मात्रा में स्राव होना. होठों, मसूड़ों, मुख म्यूकोसा और जीभ की सूजन और अल्सरेशन होना. जुबान का नीला पड़ जाना सबसे मुख्य लक्षण है. गर्दन का एक ओर झुकना (टेढ़ी गर्दन), लंगड़ापन, अंगों की कोरोनरी बैंड का लाल होना और सूजन. कंजंक्टिवल श्लेष्मा झिल्ली का जमाव और पलकों का उलझना,
बदबूदार दस्त, सांस लेने में दिक्कत, खर्राटे और निमोनिया हो सकता है. सांस लेने में दिक्कत होने के बाद मौत हो जाती है.

कैसे करें शुरुआती इलाज
बीमार पशुओं को अलग रखा जाना चाहिए. प्रभावित पशुओं को सूरज की रोशनी से दूर रखा जाना चाहिए. प्रभावित पशु को पर्याप्त आराम दें. प्रभावित पशुओं को चावल, रागी और कंबू से बना दलिया खिलाना चाहिए. छालों पर ग्लिसरीन या पशु वसा लगाएं. उपचार के लिए जल्द से जल्द पशु चिकित्सक से संपर्क करें ताकि बीमारी गंभीर रूप न ले सके. जानवरों को चरने के लिए नहीं ले जाना चाहिए. मुंह के छालों का इलाज खारे पानी से या 1 ग्राम पानी में घोलकर किया जा सकता है. पोटेशियम परमैंगनेट को 1 लीटर पानी में घोलें और इस घोल से दिन में 2 से 3 बार मुंह धोएं.

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