नई दिल्ली. भेड़ पालन मनुष्य के लिए कोई नया नहीं है. आदिकाल से भेड़ पालन का काम जारी है. भेड़ पालक भेड़ से ऊन और मीट प्राप्त करते हैं और इससे अच्छा खासा मुनाफा कमाते हैं. वहीं भेड़ की खाद की भूमि के लिए बहुत बेहतरीन मानी जाती है. एक्सपर्ट कहते हैं कि ये भूमि को बेहद उपजाऊ बना देती है. भेड़ किसी आरोग्य भूमि में चरती है और कई खरपतवार आदि घांस का उपयोग करती है. ये ऊंचाई पर स्थित चारागाह जो अन्य पशुओं के उपयोग में नहीं आते हैं उसका उपयोग करती है. एक्सपर्ट्स कहते हैं की भेड़ पलक भेड़ से प्रतिवर्ष एक या दो मेमने प्राप्त कर लेते हैं. वैसे तो भेड़ की कई नस्ल हैं, जिनका पालन करके पशुपालक मोटी कमाई करते हैं लेकिन बलांगिरी नस्ल की भेड़ का ऊन मोटा होता है, जो ठंड रोकने के लिए बेहतरीन माना जाता है.
ऐसे करें बलांगिरी भेड़ की पहचान
बलांगिरी नस्ल की ये भेड़ उड़ीसा के उत्तर पश्चिमी जिलों, बलांगीर, संबलपुर औरसुंदरगढ़ में फैली हुई है. ये भेड़ें मध्यम आकार के, सफेद या हल्के भूरे या मिश्रित रंग की होती हैं. कुछ जानवर काले भी हैं. जबकि इन भेड़ों के कान छोटे और रूठे हुए होते हैं. पूंछ मध्यम लंबाई की और पतली होती है. इनके पैर और पेट पर ऊन नहीं रहता है. जबकि इनका ऊन बेहद मोटा, बालों वाला और खुला होता है. वहीं मोटा ऊन प्राकृतिक सिकुड़न स्थिर हवा को रोकने में मदद करता है. आपकी त्वचा को ठंडे वातावरण से बचाता है. पहनने वाले को गर्म रखता है.
पालन पालक बरते ये एहतियात
इसके अलावा, नमी ग्रहण करने की अपनी क्षमता के कारण, ऊन त्वचा के बगल में एक शुष्क माइक्रॉक्लाइमेट बनाए रखता है, जिससे पहनने वाले को गर्म और सूखा रखा जाता है. वैसे भेड़ के लिए एक्सपर्ट कहते हैं कि चाहे जिस भी नस्ल की भेड़ के लिए मौसम के अनुसार इसका प्रजनन करना चाहिए. भेड़ के प्रजनन के लिए 18 महीने की आयु सबसे उचित मानी गई है. वहीं गर्मी में बरसात के मौसम में भी प्रजनन नहीं होना चाहिए. इससे भेड़ की मृत्यु दर बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. इसका सीधा-साधा नुकसान पशुपालकों को होता है. आमतौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था और सामाजिक संरचना से जुड़ा हुआ है या व्यवसाय मांस दूध उन कार्बनिक खाद और अन्य उपयोगी सामग्री देता है.
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