नई दिल्ली. पशुपालन में पशुपालकों को सबसे ज्यादा जिस चीज से परेशानी होती है वो पशुओं की बीमारी है. एक बार पशु बीमार पड़ जाए तो उसकी बीमारी का खर्चा वहीं उत्पादन कम होने से पशुपालकों को नुकसान ही नुकसान उठाना होता है. बात चाहे भेड़ की की हो या फिर अन्य पशु की बीमारी से बचाना बहुत जरूरी होता है. भेड़ में भी कई तरह की बीमारी लग जाती है. इसके चलते भेड़ों की मौत भी हो जाती है. इसलिए जरूरी होता है कि भेड़ों को बीमारी से बचाया जाए.
भेड़ों में अक्सर आंतरिक परजीवीयों द्वारा फैलाने वाले रोग भी हो जाते हैं. भेड़ खेतो व चरागाहों में आंतरिक परजीवीयों से पीड़ित हो जाती है. यह परजीवी भेड़ के पेट में अपना घर बना कर भेड़ का खून चूसते हैं व भोजन पचाने की शक्ति को नष्ठ कर देते हैं. जैसे गोल कीड़े (क) पत्ती के समान चपटे भूरे रंग के कीड़े जिन्हें फैसियाला कहते हैं भेड़ के जिगर या पित वाहनियों में पाए जाते हैं.
गाढ़ा द्रव निकलता है
इस बीमारी की वजह से भेड़ों की भूख कम हो जाती है व उन्हें दस्त लग जाते है. कुछ आंतरिक पजरीवी भेड़ों की श्वास नली व फेफड़ों में रहते हैं व वहां सूजन पैदा कर देते हैं. ऐसे में बीमार भेड़ खांसती रहती है. नाक से गाढा द्रव निकलता है. इस रोग के कारण भेड़ों की भूख कम हो जाती है. श्लेष्म शिल्लीयां पीली पड़ जाती है तथा कुछ जातियों में दोनों जबड़ों के बीच पानी की थैली बन जाती है. कुछ परजीवी भेड़ की त्वचा में घुस कर खुजली पैदा करते हैं.
ऊन गिरनी शुरू हो जाती है
इस जगह से ऊन गिरनी शुरू हो जाती है. इसके अलावा धीरे धीरे यह रोग सारे शरीर में फैल जाता है. बीमारी की पहचान की बात की जाए तो इसके लक्षणों द्वारा व समय-समय पर पशु की मेगनियों की जांच कर की जा सकती है. एक्सपर्ट कहते हैं कि नजदीकी चिकित्सा संस्थान से पशु चिकित्सक की सलाह पर रोगी पशु को दवाई देनी चाहिए. पशु चिकित्सक की सलाह पर ही इलाज कराना चाहिए.
कैसे कर सकते हैं बचाव
पशुओं का साथ, नमी रहित चरागाह में चराएं.
ज्यादा संख्या में भेड़ों को एक ही छोटी चरागाह में न चराएं.
स्वस्थ भेड़ों को बीमार भेड़ों से अलग रखें व स्वस्थ भेड़ों का खाना बीमार भेड़ों की मेगनियों से प्रभावित न हो.
जिन चरागाहों में फिल्लो, केंचुओं आदि का प्रकोप ज्यादा हो उन जगहों पर भेड़ों को न चराएं.
Leave a comment