नई दिल्ली. भारत में गर्मियां बढ़ती जा रही हैं और 2024 भी इससे अलग नहीं होने वाला है. इस साल के लिए भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) का पूर्वानुमान बताता है कि भारत को सामान्य से अधिक लंबे समय तक चलने वाली भीषण गर्मी पड़ेगी. पिछला साल भारत के लिए पिछले 122 वर्षों में दूसरा सबसे गर्म वर्ष था. जिसके चलते मनुष्यों, जानवरों और पौधों पर गर्मी का तनाव बढ़ गया. विशेषज्ञों का मानना है कि तापमान में वृद्धि की प्रवृत्ति, अधिक बार-बार, तीव्र और लंबे समय तक चलने वाली हीटवेव भविष्य में और बढ़ेगी, क्योंकि 2050 के अंत तक तापमान ±1.2° से ±3.5° C तक बढ़ सकता है.
यही वजह है कि बढ़ते तापमान और लंबे समय तक चलने वाली गर्मी की लहरों के चक्र से पहले से ही पानी की कमी हो रही है. जबकि कीटों और बीमारियों के हमलों की घटनाएं बढ़ रही हैं. कृषि उत्पादकता कम हो रही है, और इसके नतीजे में खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति बढ़ रही है. जबकि कृषि पर जलवायु संकट के प्रभावों का अच्छी तरह से अध्ययन और रिपोर्ट किया गया है. भारत के पशुधन क्षेत्र पर संकट के प्रभावों पर शोध नहीं किया गया है.
तनाव उत्पादन क्षमता पर डाल रहा असर
वहीं बढ़ते तापमान और आर्द्रता के कारण मवेशियों और भैंसों में गर्मी का तनाव उनके स्वास्थ्य, भलाई और उत्पादन क्षमता पर प्रभाव डालता है. हम गर्मियों के मध्य में हैं और डेयरी कंपनियां दूध की आपूर्ति में कमी की रिपोर्ट कर रही हैं. जबकि लैंसेट की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारत में बढ़ते तापमान से 2085 तक दूध उत्पादन में 25% की कमी आने का खतरा है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक और उपभोक्ता है, ये उत्पादन हानि लाखों लोगों की आजीविका और पोषण को खतरे में डाल देगी.
72 टीएचआई के बाद बढ़ जाता है खतरा
खासकर 89 मिलियन छोटे डेयरी किसान जो कुल दूध उत्पादन में 85% का योगदान करते हैं. मवेशियों और भैंसों पर गर्मी के तनाव के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए डेयरी विशेषज्ञ एक वैज्ञानिक विधि-तापमान आर्द्रता सूचकांक (टीएचआई) का उपयोग करते हैं. यह सूचकांक पशु के तापीय आराम को मापता है. 72 तक का सूचकांक मूल्य दूध उत्पादन के लिए बेहतरीन है और 72 से अधिक प्रत्येक टीएचआई मूल्य वृद्धि के लिए, मवेशियों में दूध उत्पादन स्तर प्रति दिन 200 ग्राम तक घटने लगता है.
रात में भी नहीं मिल रही राहत
भारत के उत्तरी मैदानी इलाकों (वह क्षेत्र जो भारत के दूध उत्पादन का 30% हिस्सा है) में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि गर्मियों के दौरान टीएचआई का स्तर 80 और उससे भी अधिक हो जाता है. वर्ष के आधे से अधिक समय (अप्रैल से अक्टूबर) तक, डेयरी मवेशी गर्मी के तनाव से पीड़ित रहते हैं. जानवरों को थोड़ी राहत मिलती है क्योंकि रात में भी तापमान तेजी से ठंडा नहीं होता है. यदि ये स्थितियां निरंतर जारी रहीं, तो 2030 तक उत्तरी मैदानी इलाकों में गर्मी के तनाव से प्रेरित उत्पादन का नुकसान 3.4 लाख टन दूध तक पहुंचने का अनुमान है. डेयरी किसानों को लगभग 15,000 करोड़ का नुकसान होगा क्योंकि उनके मवेशी कम दूध का उत्पादन करते हैं और गर्मी से प्रेरित स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित होंगे.
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