नई दिल्ली. जैसलमेर के ओरणों और पर्यावरण को बचाने में लगे फतेहगढ़ तहसील के सांवता गांव के पर्यावरण संरक्षक सुमेर सिंह भाटी को 27 मार्च—2024 को तमिलनाडु के मदुरै में आयोजित एफईएस, सेवा, आईजीएफआरआई और रेंज मैनेजमेंट सोसायटी के संयुक्त तत्वाधान में वर्ष 2026को अंतर्राष्ट्रीय चारागाह व पशुपालन वर्ष के रूप में मनाने के उपलक्ष्य में रेंजलेंड अवार्ड से सम्मानित किया गया. ओरण, गोचर व पारंपरिक पशुपालन संरक्षण से जुड़े विभिन्न संगठनों द्वारा भारत में रेंजलैंड अवार्ड की शुरुआत की गयी है, जिसमें ओरण गोचर चारागाह संरक्षण कार्य के लिए पहला अवार्ड सुमेर सिंह को मिला है.
जैसलमेर के सीमावर्ती विशाल चारागाहों में सदियों से ऐसे सैकड़ों कुएं है, जिनके जल से आमजन का जीवन तो चलता ही है, पशुधन भी पलता है. पशुपालन के लिए ही स्थानीय लोगों ने अपने चारागाहों (ओरण- गोचर) में यह कुएं बनाएं, जिससे उन्हें व उनके पशुधन को पानी मिल सके. इस क्षेत्र लाखों पशुओं के लिए सैकड़ों की संख्या पर कुएं हैं. इन सभी कुंओं पर हजारों की संख्या में पशु पानी पीते हैं. मगर, सरकार ने इन चारागाह, गोचर और ओरण की जमीन को विंड कंपनियों को आंवटित करना चाहती है. अगर, ऐसा हुआ तो मानव जाति के अलावा पशुओं के लिए भी बड़ा संकट पैदा हो जाएगा. जैसलमेर और थार के सीमावर्ती के लोग सुमेर सिंह के नेतृत्व में इस ओरण के लिए इतनी बड़ी लड़ाई क्यों लड़ रहे हैं. इसमें काफी हद तक कामयाबी भी मिलती दिख रही है. इसी का नतीजा है कि आज यानी 27 मार्च 2024 को सुमेर सिंह को उनके जन कल्याणकारी आंदोलन के लिए रेंजलैंड अवार्ड्स 2023 से नवाजा गया.
जिंदगी में कुछ ऐसा काम करें, जो दुनिया आपको हमेशा याद रखे
सुमेर सिंह भाटी ने कार्यक्रम के दौरान मौजूद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच अपने विचार रखे और जैसलमेर के ओरणो के संरक्षण की आवाज को भी उठाया. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2026 में मंगोलिया द्वारा अंतर्राष्ट्रीय चारागाह व पशुपालन वर्ष के रूप में प्रस्तावित है. इस दौरान भाटी ने कहा की भगवान ने जीवन दिया है तो कुछ न कुछ अपनी मिट्टी के लिए करना चाहिए, वन्यजीव, पशु, ओरण, गोचर, चारागाह, तालाब, कुएं, बावड़ी के संरक्षण में सभी युवाओं को जरुर आगे आना चाहिए और राष्ट्रीय स्तर पर ओरण टीम की आवाज की सरहाना हो रही अच्छे कार्य के लिए.
आंदोलन करके उठाई लोगों की आवाज
सुमेर सिंह ने एक योद्धा की तरह लड़कर ओरण (पवित्र नाली) और गोचर (चरागाह) भूमि की रक्षा की और घास के मैदानों और ओरणों की रक्षा के लिए कई आंदोलन शुरू किए. उन्होंने हस्तक्षेप किया ताकि विभिन्न प्रकार की घासें लगाकर घास के मैदान और बंजर भूमि को हरे-भरे चरागाहों में परिवर्तित किया जा सके. अब ये बंजर भूमि हरे-भरे चरागाहों में बदल गई हैं.
600 हेक्टेयर भूमि को ओरण भूमि में पंजीकृत कराया
डेगाराय मंदिर का ओरान 10 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें से कुछ शुरू में सरकार के स्वामित्व में था और बाद में कंपनियों को आवंटित किया गया था. इस प्रवृत्ति का मुकाबला करने के लिए, सुमेर सिंह ने स्थानीय समुदाय के साथ मिलकर शेष भूमि को पुनः प्राप्त करने की रणनीति तैयार की। सम्मिलित प्रयासों से लगभग 600 हेक्टेयर भूमि को ओरण भूमि के रूप में सफलतापूर्वक पंजीकृत किया गया.
एनजीटी ने भी हमारे ओरण के पक्ष में फैसला दिया
सुमेर सिंह ने बताया कि हमने सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन किया, मीडिया से जुड़े और ओरण और चरागाह भूमि के संरक्षण के लिए स्थानीय लोगों और सरकार से वकालत की. एइसी का नतीजा रहा कि नजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने आदेश दिया कि ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और अन्य वन्यजीवों जैसी कमजोर प्रजातियों के आवासों की रक्षा के लिए डेगराई ओरान के भीतर कोई उच्च-शक्ति लाइनें स्थापित नहीं की जानी चाहिए. वर्तमान में हमारे प्रयासों का ही नतीजा है कि इन 10,000 हेक्टेयर भूमि का उपयोग कई चरागाहों के लिए किया जा रहा है, साथ ही वन्यजीव और जैव विविधता संरक्षण प्रयासों को सुविधाजनक बनाने के लिए हर 5 किमी पर तालाबों की स्थापना द्वारा ओरण को समर्थन दिया जा रहा है.
सुमेर सिंह के बारे में संक्षिप्त जानकारी
45 साल के सुमेर सिंह भाटी गांव सावंता, जिला जैसलमेर, राजस्थान के रहने वाले हैं. वह पशुपालक हैं, उनके पास 200 जैसलमेरी ऊंट, 15 थारपारकर गाय, 100 जैसलमेरी भेड़ व 30 अन्य जानवर हैं. सुमेर सिंह के पास पैतृक संपत्ति के रूप में 16 हेक्टेयर जमीन है, जिस पर सालाना बाजरा, ज्वार, मूंग, तिल, मोठ जैसी फसलें उगाई जाती हैं.सुमेर सिंह का परिवार पिछली पांच पीढ़ियों से पशुधन पालन में लगा हुआ था, सुमेर सिंह से पहले की पीढ़ियां मुख्य रूप से पशुधन पर निर्भर थीं.
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