नई दिल्ली. देश में कई राज्यों के किसान अब खेती के साथ-साथ बड़े स्तर पर मछली पालन भी कर रहे हैं. इससे किसानों को अच्छी आमदनी हो रही है. वहीं केंद्र राज्य सरकारों की ओर से भी मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को सब्सिडी भी दी जाती है. हालांकि बहुत से जगह पर किसानों को मछली पालन से जुड़ी सटीक जानकारी नहीं होती. इस वजह से मछली पालन में या तो उन्हें नुकसान होता है या फिर किसान मछली पालन करते ही नहीं है. नुकसान से बचने के लिए यह जाना जरूरी है कि मछली पालन में कौन-कौन सी तकनीक को अपने से फायदा मिल सकता है.
इस आर्टिकल में हम आपको हम बताएंगे कि कैसे प्लास्टिक के इस्तेमाल से मछली की साइज को बढ़ाया जा सकता है. इस खास तकनीक का इस्तेमाल खासकर पहाड़ी इलाकों में किया जाता है. एक्सपर्ट का कहना है की इस तकनीक का इस्तेमाल करके मछली का साइज बड़ा किया जा सकता है. जिससे मछली पालक को फायदा होना लाजमी है. क्योंकि मछली के साइज जब बड़ा होगा तो मछली किसान को ज्यादा अच्छे दाम मिलेंगे.
पॉलिथिन से कैसे बढ़ता है मछली का साइज
देश की पहाड़ी क्षेत्र मछली पालन करना मुश्किल काम है. वहां मछली पालन करने के लिए गर्मी के दिन में तालाब को तैयार करना बेहद बेहतर होता है. साथ ही विदेशी कार्य प्रजाति के मछलियों को पाला जाता है. वहां तालाब में किसान प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं. मछली पालन में प्लास्टिक के इस्तेमाल करने से मछलियों की साइज को बढ़ाया जा सकता है. दरअसल, पॉलिथीन की उपयोग से पानी के तापमान दूसरे 6 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है. जो मछलियों को बढ़ाने में मदद करता है.
कैसा होना चाहिए तालाब
पहाड़ी राज्यों मछली पालन के लिए 100 से 200 वर्ग मीटर का तालाब बेहतर माना जाता है. तालाब बनाने से पहले मिट्टी और पानी की गुणवत्ता की जांच करना जरूरी होता है. ऐसे में चिकनी दोमट मिट्टी को कम सोखने के लिए उत्तम मानी जाती है. वहीं तालाब को बनाते समय पॉलिथीन बिछाना चाहिए. ऐसा करने से मछली पालन अधिक उत्पादन होता है.
इन मछलियों को पालें
जो मछली पालन की तकनीक से मछली पालन करना चाहते हैं. वह मछली पालन से पहले तालाब तैयार होने के बाद उसने चूने और गोबर लेप करें. इसके दो सप्ताह के बाद विदेशी कार्य को तालाब में डालें. इसमें सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प और कॉमन कार्प, किस्म की मछलियां शामिल कर सकते हैं. इन मछलियों का पालन करने से अधिक फायदा किसानों को मिलेगा.
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