नई दिल्ली. भारत में गाय का पालन बड़े स्तर पर होता है. यहां गाय के दूध की हिस्सेदारी भी अन्य मिल्क के मुकाबले 50 फीसदी है. कई राज्यों में गायों का पालन किया जाता है. गायों में कई ऐसी नस्लें जो 20 लीटर से 80 लीटर तक प्रतिदिन दूध देने की क्षमता रखती हैं. अन्य पशुओं की तरह ही गायों के पालन में हमेशा ही इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि उसे बीमारी न लगे. अगर एक बार गाय को बीमारी लग जाती है तो दूध उत्पादन कम हो जाता है और पशु की मौत का भी खतरा रहता है.
गायों में कई तरह की बीमारी है जो उन्हें परेशान करती है. इसमें गलाघोंटू, लंगड़ा बुखार, खुरपका-मुंहपका, प्लीहा, टीबी औरर संक्रामक गर्भपात आदि. इस आर्टिकल में आपको गयों की इन बीमारियों के बारे में जानकारी दी जा रही है कि इन बीमारियों के क्या लक्षण होते हैं और क्या-क्या दिक्कतें होती हैं. आइए गायों की कुछ खतरनाक बीमारियों के बारे में इस आर्टिकल में जानते हैं.
गलघोंटू बीमारी क्या है
गलाघोंटू बीमारी में बुखार, सांस लेने में दिक्कत, गले में सूजन की दिक्कत होती है. इसका इलाज एंटीबायोटिक दवा एवं इंजेक्शन देकर किया जाता है. बरसात के मौसम से पहले रोग निरोधक टीके लगवाने से पशु को सेफ किया जा सकता है.
थनैला बीमारी
थनैला बीमारी में थनों में दिक्कत आती है. दूध में छर्रे आना, थनों में सूजन इस रोग के मुख्य लक्षण हैं. लक्षण के आधार पर अलग-अलग दवाएं दी जाती हैं. पशु के दूध एवं थन की समय-समय पर जांच करते रहना चाहिए.
लंगड़ा बुखार
लंगड़ा बुखार में 106 – 107 डिग्री तक बुखार होता है. पशु के पैरों में सूजन, पशु का लंगड़ा कर चलना इसके लक्षण हैं. प्रोकेन पेनिसिलिन नाम की दवा उपयोगी होती है. बरसात से पहले टीकाकरण करवाना और रोगी पशुओं से स्वस्थ पशु को दूर रखना चाहिए.
मिल्क फीवर
इस बीमारी में शरीर का तापमान कम हो जाता है. पशु को सांस लेने में परेशानी होने लगती है. इस बीमारी में कैल्शियम साल्ट का इंजेक्शन देते हैं. प्रसव के 15 दिन तक पूरा दूध नहीं निकालना चाहिए और पशु को कैल्शियम से भरा आहार एवं सप्लीमेंट दें.
खुरपका मुहंपका
मुंह और खुर में दाने होते हैं. दाने छाला बनकर फट जाते हैं और घाव गहरा हो जाता है. तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए. बरसात से पहले टीकाकरण कराना चाहिए और बारिश में पशु को खुले में चरने नहीं देना चाहिए.
प्लीहा (एंथ्रेक्स)
इस बीमारी में पेशाब और गोबर में खून आना, तेज बुखार होना आम है. पशु चिकित्सक से संपर्क करके स्थिति के हिसाब से उपचार कराना बेहतर विकल्प है. इस रोग से पशु को बचाने के लिए वक्त रहते टीकाकरण करा लेना चाहिए.
यक्ष्मा (टी.बी)
इस बीमारी में पशु सुस्त हो जाता है, सूखी खांसी और नाक से खून आने लगता है. रोग के लक्षण दिखते ही पशु को अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए. पशु के आहार का खास ध्यान रखना चाहिए.
संक्रामक गर्भपात
इस रोग में 5-6 महीने में योनिमुख से तरल गिरता है, और बच्चे होने के लक्षण दिखते हैं लेकिन गर्भपात हो जाता है. पशु की ठीक से सफाई करनी चाहिए. डीवॉर्मिंग करनी चाहिए और पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. 6 से 8 महीने के पशु को ब्रुसेला का टीका लगवाना चाहिए, फिर इस रोग की संभावना कम होती है. इसमें पशु का बायां पेट फूल जाता है, पेट को थपथपाने पर ढोलक की आवाज आती है.
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