नई दिल्ली. मछली पालन एक बेहतरीन व्यवसाय है. खासतौर पर ग्रामीण इलाके में इसे आसानी से किया जा सकता है. मछली विशेषज्ञों का कहना है कि मत्स्य पालन एक फायदेमंद खेती है जिसे आम आदमी भी बेहद ही आसानी से कर सकता है. इसमें न तो ज्यादा मजदूरी लगती है न ही बहुत ज्यादा बीमारी का खतरा होता है. इसको पालने से आसानी से मुनाफा कमाया जा सकता है. मछली के बारे में कहा जाता है कि देश की 70 फीसदी आबादी मछली खाना पसंद करती है. बता दें कि मछली एक तो खाने के लिए पाली जाती है जबकि बहुत सी नस्ल की मछलियां सजाने के लिए भी पाली जाती हैं.
सजाने वाली मछलियां घरों से लेकर, हॉस्पिटल, रेस्टोरेंट, फाइव स्टार होटेल से लेकर तमाम जगहों पर एक्वेरियम में आसानी से देखी जा सकती है. वैसे तो ये सजावटी मछलियां बेहद ही खूबसूरत होती हैं लेकिन जब इन्हें बीमारियां लग जाती हैं तो इनकी खूबसूरती पर दाग लग जाता है. आइए आपको इस खबर में सजावटी मछलियों को होने वाली आर्गुलोसिस डिसीज के बारे में बताते हैं.
क्यों होती है आर्गुलोसिस बीमारी
एक्सपर्ट कहते हैं कि आर्गुलोसिस एक ब्रांचियूरन क्रस्टेशियन बाहरी परजीवी, आर्गुलस (मछली जूं) के कारण होने वाली घातक बीमारी है. सजावटी मछलियों जैसे, गोल्डफिश एवं इसकी किस्में, कोई कार्प और ऑस्कर आदि अर्गलस संक्रमण के प्रति अति संवेदनशील हैं. आर्गुलोसिस, मछली हेल्थ के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, जो लगातार मछली पालन के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करती है. सुनहरी मछलियों में गोल्डफिश (कैरासियस ऑरेटस) प्रजातियों का इंटरनेशनल स्तर पर सबसे अधिक कारोबार किया जाता है और वैश्विक स्तर पर मांग को पूरा करने के लिए एक्सट्रीम इंटेनसिटी के साथ एक्वाकल्चर किया जा रहा है. इसके अलावा ट्रांसपोर्टेशन व तनाव एवं मिसमैनेजमेंट, फिश फार्मिंग प्रोसेस, सजावटी मछली को परजीवी सहित अन्य संक्रामक कारकों से संक्रमण संभावनाएं भी बढ़ाते हैं.
मछली के शरीर से चूसते हैं खून
आर्गलस एक मैक्रो-एक्टोपारासाइट है, जो लगभग 5-10 मिमी आकार का होता है. जिसका शरीर, सिर, थोरेक्स और पेट से मिलकर बना होता है. इस परजीवी का सिर चपटा घोड़े की नाल के आकार के कवच से ढका होता है. इसमें एक मैक्सिलिप्ड, प्रीओरल स्टिंग और बेसल ग्रंथियां भी पायी जाती हैं. इनमें एक जोड़ी चूसने वाली होती है, जिसकी मदद से ये मछली की स्किन में अपने आपको स्थापित करते हैं. फिर डंक की मदद से मछली के शरीर से खून चूसते हैं, जो आगे चलकर गहरा घाव का रूप ले लेती है. थोरेक्स चार भागो में बांटा होता है, जिसके प्रत्येक भाग में तैराकी पैरों की एक जोड़ी होती है. शरीर के आखिरी भाग में एक बाइलोबेड पेट होती है, जिसमें नर एवं मादा को पहचान करने वाली संरचना बनी होती है, मादा में एक जोड़ी स्पर्म और नर में दो धागे की तरह टेस्टिकल्स देखने को मिलता है.
Leave a comment