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Milk Production: मुर्रा भैंस के लिए बेहतरीन है ये चारा, खिलाने से बढ़ जाएगा उत्पादन, पढ़ें बुवाई का तरीका

murrah buffalo livestock
प्रतीकात्मक फोटो:

नई दिल्ली. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बेहतरीन और दुधारू पशुधन की, विशेषकर, हरियाणा नस्ल की गाय व मुर्रा भैंस दूध के लिए पाली जाती हैं. इन दोनों दुधारू नस्लों के पशुओं के लिए अच्छा व पौष्टिक हरा चारा वर्षभर उपलब्ध नहीं होता है. इसलिये इनका उत्पादन दिन-प्रतिदिन घटता जा रहा है. इन्हें हरे चारे के रूप में गन्ना का अगोला खिलाया जाता है. जबकि यह पौष्टिकता की दृष्टि से काफी निचले स्तर का माना जााता है. उन्नत तकनीक से हरे बारे वाली फसलों की काश्त पर अधिक बल देना चाहिए. इसके साथ-साथ इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि कुल काश्त भूमि के 10 प्रतिशत क्षेत्र पर पशुओं के लिए अलग से पौष्टिक चारे को उगाने की योजना जरूर बनायें.

एक्सपर्ट का कहना है कि ऐसा फसलचक्र अपनायें, जिससे खाद्यान्न उत्पादन के साथ-साथ पशुओं को पौष्टिक चारा भी वर्षभर उपलब्ध हो सके. खरीफ के मौसम में कुछ पौष्टिक चारे वाली फसलों की वैज्ञानिक खेती की जा सकती है. ऐसी चारा फसलों में एक फसल के बारे में नीचे बताया जा रहा है.

लोबिया की इन किस्मों को बोएं
लोबिया बेहद पौष्टिक होता है. इसमें 17 से 18 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है. यह अकेले अथवा गैर दलहनी फसलों जैसे-ज्वार, बाजरा या मक्का के साथ बोई जा सकती है. उन्नत किस्में के ताौर पर रशियन जायन्ट, एचएफसी-42-1. यूपीसी.-5286, 5287, यूपीसी 287. एनपी 3 (ई.सी. 4216), बुन्देल लोबिया का इस्तेमाल कर सकते हैं. वहीं आईएफसी.-8503), सीओ-5. सीओ (एफसी)-8 इत्यादि किस्मों को बुआई के लिये चुना जा सकता है. इन सभी किस्मों में प्रोटीन की मात्रा पर्याप्त पाई जाती है. ये खाने में सुपाच्य होता है.

बुआई का सही समय एवं बीज की मात्रा
वर्षा प्रारंभ होने पर जून-जुलाई के महीनों में इसकी बुआई करनी चाहिए. अकेले बोने के लिए प्रति हैक्टर 40 किलोग्रााम बीज पर्याप्त होते हैं. मक्का या ज्वार के साथ मिलाकर बुआई के लिए 15-20 कि.ग्रा. बीज का प्रयोग करना चाहिए. बीज को 25 ग्राम मैन्कोजेब प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से अवश्य उपचारित करना चाहिए. खेत में बने कुंडों में करनी चाहिए. पक्ति से पक्ति की दूरी 30 सेंमी रखनी चाहिए. मिलवां खेती में बुआई अलग-अलग पंक्तियों में 2:1 के अनुपात में करना फायदेमंद है.

उर्वरक कौन सा डालें
बुआई के समय 15-20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, फॉस्फोरस 60 कि.ग्रा. तथा पोटाश 40 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर प्रयोग की दर से करना चाहिए. नाइट्रोजन की पूरी खुराक बुआई के समय ही प्रयोग करना न भूलें. सिंचाई की बात की जाए तो खरीफ में बोई गई फसलों को सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं पड़‌ती है लेकिन बरसात न होने पर सिंचाई करते रहना चाहिए. फूल और फली बनने की अवस्था में फसल चारे की कटाई के लिये तैयार हो जाती है. यह अवस्था बुआई के 60-75 दिनों बाद आती है. हरे चारे की उपन 250-300 क्विंटल प्रति हैक्टर प्राप्त होती है.

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