नई दिल्ली. मार्च का महीना चल है, आहिस्ता आहिस्ता तेज गर्मी भी शुरू हो जाएगी. इस वजह से पशुओं की देखभाल की ज्यादा जरूरत भी पड़ेगी. खास करके उत्तर पश्चिमी भारत की बात करें तो यहां गर्मी ज्यादा होती है और लंबे समय तक रहती है. जबकि तापमान भी 47 डिग्री के पार कर जाता है. ऐसे में पशुओं को कई तरह की दिक्कत होती है. वह तनाव में आ जाते हैं, जिससे उनके पाचन तंत्र, दूध उत्पादन क्षमता पर असर पड़ता है. जबकि नवजात पशुओं की देखभाल में थोड़ी सी भी लापरवाही करने पर उनके शारीरिक विकास, स्वास्थ्य, रोग प्रतिरोधक क्षमता, उत्पादन क्षमता पर भी असर पड़ता है.
एक्सपर्ट कहते हैं कि गर्मियों में पशुओं पालते समय सावधानी न बरती जाए तो पशुओं द्वारा खाए जाने वाले सूखे चारे की मात्रा 10 से 30% और दूध उत्पादन क्षमता 10% तक कम हो जाती है. ज्यादा गर्मी के कारण ऑक्सीडेटिव तनाव की वजह से पशुओं की रोगों से लड़ने की आंतरिक क्षमता प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. वह आने वाले बरसात के मौसम में विभिन्न बीमारियों का शिकार हो जाते हैं. जिसकी वजह से उत्पादन और प्रजनन क्षमता में गिरावट होती है. इसलिए जरूरी है कि गर्मी के मौसम में पशुओं को कम से कम दो बार जरूर नहलाएं और साफ सफाई का पूरा ध्यान रखें.
गर्मी के दिनों ये भी करें. जबकि वातावरण का तापमान अधिक होने पर पशुओं के शरीर में दो या तीन बार ठंडे पानी के छिड़काव कर दें. यदि संभव हो तो भैंसों को तालाब पोखरों पर ले जाएं. क्योंकि यह सिद्ध हो चुका है कि दोपहर के समय यदि पशुओं को ठंडे पानी से नहलाया जाए तो उनकी उत्पादन और प्रजनन क्षमता बढ़ जाती है. इसके अलावा पशुओं के आवास के लिए एक साफ सुथरा हवादार शेड होना चाहिए, जिसमें ठोस बिना फिसलन वाले फर्श पशु के मल और पानी की निकास के लिए हों. पशुपाला की छत हल्की खुली होनी चाहिए. ताकि गर्मी में पशुओं को ज्यादा गर्मी ना लगे. एसबेस्टस शीट का इस्तेमाल किया जा सकता है. ज्यादा गर्मी के दिनों में छत पर घास और छप्पर आदि की 6 इंच मोटी परत बिछाई जा सकती है. या परत गर्मी रोकने का काम करती है. पशुओं को अप्रैल के महीने से ही सरसों का तेल देना शुरू कर दें, ये तेल उसे तीन महीने तक डाइट के हिसाब से देना बेहद जरूरी होता है. इससे उसकी दूध उत्पादन की क्षमता बढ़ जाती है.
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