नई दिल्ली. जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है दूध उत्पादन कम हो जाता है. बढ़ता तापमान डेयरी में उत्पादन और उत्पादकता को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है. इसके चलते दूध उत्पादन में भारी कमी देखने को मिलती है. जबकि इससे डेयरी की स्टेबिलिटी प्रभावित हो जाती है, जिसमें 70% से अधिक महिलाओं की भागीदारी है. औसतन एक डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से दूध उत्पादन में 5-10% की कमी आती है. उत्पादन की लागत दिन व दिन बढ़ती जा रही है. हरे चारे सहित चारे की कमी भी देखने को मिल रही है. वहीं सांद्रण मिश्रण की बढ़ती कीमत ने दिक्कतों को और ज्यादा बढ़ा दिया है. कामर्शियल डेयरी फार्म और इंटरप्रेनोरियल इंटरपाइजेज के साथ भी मुश्किल है.
कई छोटी-छोटी बातों को ध्यान में अगर रखा जाए तो पशुओं से दूध उत्पादन गर्मी में भी उतना ही दिया जा सकता है जितना उससे पहले तक देते रहे हैं लेकिन पशुपालक इन बातों की ओर गौर नहीं करते जिससे उनको नुकसान उठाना पड़ता है.
भैंस पर पड़ता है गर्मी का अधिक असर: गर्मी में खासतौर पर भैंस जिसकी चमड़ी काली होती है और सूरज की रोशनी का असर उसपर ज्यादा होता है. वह बीमार तक पड़ जाती है. एक्सपर्ट कहते हैं कि जिस तरह से इंसानों को गर्मी लगती है. पशुओं को भी लगती है. यही वजह है कि उनको भी केयर करने की जरूरत होती है. जानवर खुद से बता नहीं सकते लेकिन पशुपालकों को चाहिए कि वह गर्मी में पशुओं का अच्छी तरह से ख्याल रखें और उन्हें गर्मी से होने वाले तनाव से हर मुमकिन कोशिश हो बचाएं. दूध पिलाने का अभ्यास सुबह, शाम और रात के दौरान किया जाना चाहिए.
अपनाएं ये तरीके: गर्मी में प्रबंधन प्रथाओं का पालन करने की आवश्यकता है. इसमें पूरे दिन पर्याप्त पानी की आपूर्ति, पशु शेड में वेंटिलेशन की सुविधा, धुंध प्रणाली और पंखे प्रदान करना, स्वच्छ दूध उत्पादन प्रथाएं अपना सकते हैं. दिन में 3-4 बार पशु पर पानी छिड़कने के उपाय और हरा चारा उपलब्ध कराने की व्यवस्था करें. नियमित रूप से विटामिन ए की खुराक दे सकते है. पानी अलग से उपलब्ध कराया जाना पशुओं के लिए बेहद जरूरी है. दिन के समय मवेशियों को चरने नहीं देना चाहिए, लेकिन उन्हें पेड़ों के नीचे आश्रय दिया जा सकता है. ताकि उनपर तापमान का ज्यादा असर न हो. मास्टिटिस की घटनाओं को कम करने के लिए वैज्ञानिक दूध देने की प्रथाओं का पालन किया जाना चाहिए. विटामिन और मिनरल सप्लीमेंट जरूर देना चाहिए.
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