नई दिल्ली. थनैला रोग जिसे मैस्टाइटिस भी कहा जाता है, यह जीवाणु पशुओं में थनों के रास्ते से शरीर में प्रवेश करता है. इसीलिए इसे आम भाषा में थनैला रोग कहा जाता है. वायरस बैक्टीरिया, फंगस, यीस्ट माइक्रो प्लाज्मा जैसे जीवाणुओं के कारण होता है. यदि समय रहते इसका इलाज न किया गया तो पशुओं के दूध देने की क्षमता तो कम होती ही है. इस रोग के उपचार न करने की कंडीशन में पशुओं में कई और गंभीर समस्या भी हो सकती है. इसके इलाज के लिए पशुपालकों के लक्षण और बचाव के बारे में पता होना चाहिए.
इन वजहों से होता है संक्रमण
बकरियां में थनैला रोग की पहचान उसके लक्षणों के आधार पर की जा सकती है. इस बीमारी से पीड़ित होने वाली बकरियां के दूध के रंग में बदलाव देखने को मिलता है. दूध कम होता है. स्वाद भी बदल जाता है. थनों में सूजन और लालिमा थन के ऊपर की त्वचा का तापमान ज्यादा होना. इसके अलावा भूख कम लगना, लंगड़ापन जैसे लक्षण दिखते हैं. कई बार मेमन की सांस लेने की वजह से नली में संक्रमण हो जाता है. ऐसे में जब वह दूध पीते हैं तो थनों में संक्रमण में प्रवेश कर जाता है. इसके अलावा थनों में चोट या घाव लगने से भी जीवाणु थानों में प्रवेश करके संक्रमण को फैला देते हैं. यदि बकरियों के खाने पीने की चीजों में या पालन पोषण में किसी तरह का बदलाव किया जाए तो उससे भी संक्रमण होने का खतरा रहता है. इसके साथ ही अगर उन्हें संतुलित आहार नहीं मिलता तो भी उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है.
रोग होने पर क्या करें
सवाल उठता है कि थनैला रोग से बचाव कैसे किया जाए तो ऐसे में बकरियों को थनैला रोग से बचाने के लिए पशुपालक आईसीएआर की ओर से दिए गए सुझाव को आजमा सकते हैं. थनैला रोग की जांच के लिए पशुओं की शुरुआती दूध को स्ट्रिप कप के ऊपर डाल दिया जाता है. अगर कप के जाल के ऊपर से कुछ अंश बन जाता है तो समझा जाता है कि थनैला रोग है. बकरियों का दूध निकालने से पहले हाथों को अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए. थनैला रोग से ग्रसित पशु का दूध सबसे आखरी में निकलना चाहिए. दूध निकालने के बाद थनों के ऊपर ग्लीसिरीन और बीटाडीन 1 से 5 की मात्रा का घोल बनाकर लगाना चाहिए. यह घोल दूध निकलने वाली जगह पर ही लगाना चाहिए.
ये एहतियात बरतनी चाहिए
रोग ग्रस्त बकरी और बच्चों को स्वस्थ पशुओं से दूर रखना चाहिए. बकरियों के रहने की जगह और आसपास सफाई की व्यवस्था होनी चाहिए. उनके आवास हवादार होना चाहिए. उनके आवास सूखा और साफ होना चाहिए. रोजाना थानों की अच्छी तरह से सफाई करना चाहिए. एक पशु का दूध निकालने के बाद अच्छी तरह से उसे धो देना चाहिए. पशु के थनों के समय-समय पर देखते रहना चाहिए. कोई गांठ या दूध के थक्के दिखें तो तुरंत पशु चिकित्सा से संपर्क करना चाहिए. थनैला रोग हो जाने पर इसका इलाज बहुत ही खर्चीला है और इससे दूध का उत्पादन तेजी से कम हो जाता है. पशुपालकों को भारी नुकसान होता है. इसलिए बचाव करना ही सबसे बेहतर विकल्प है.
Leave a comment