नई दिल्ली. खेती किसानी के साथ-साथ बहुत से किसान अब मछली पालन और झींगा पालन करके भी अपनी आजीविका चला रहे हैं. भारत से झींगा पूरी दुनिया में निर्यात किया जाता है. कई देशों को भारत का झींगा काफी ज्यादा पसंद भी आता है. इसी वजह से झींगा पालन में अच्छा खासा मुनाफा भी मिलता है. हालांकि झींगा पालन के दौरान कुछ सावधानी न बरती जाए तो इसका पालन बेकार हो सकता है. दरअसल झींगा में विभिन्न तरह के जीवाणु विषाणु कटक और परजीवी द्वारा होने वाली होने वाले नुकसान का ध्यान रखना जरूरी है. ऐसा न करने पर झींगा में वाइब्रियोसिस नाम की बीमारी हो जाती है. जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है. आईए जानते हैं इस बीमारी का कैसे पता करें इसे कैसे रोका जा सकता है.
ये हैं इस बीमारी के लक्षण
वैज्ञानिकों का कहना है कि वाइब्रियोसिस संक्रमण झींगा के सभी जीवन चरणों में होता है. लेकिन हैचरी में ये आम है. एक्सपर्ट के मुताबिक यह गंभीर प्रगतिशील जीवाणु रोग है. वाइब्रियोसिस के समान्य लक्षणों की बात की जाए तो सुस्ती, आसमान्य तैराकी व्यवहार, भूख न लगना, लाल मलिनीकरण, भूरे गलफड़े, नरमखोल, एट्रोफिडहेपेटो पैनक्रियाज, पूंछ और उपांग क्षेत्र में उप-कटिकुलर टिशू का परिगलन शामिल है. गंभीर रूप से प्रभावित झींगा के गलफड़े के आवरण घिसे हुए दिखाई देते हैं और बड़े पैमाने पर काले फफोले पेट पर दिखाई देते हैं.
इस तरह इसके वायरस को रोकें
वैज्ञानिकों का कहना है कि बीएमपी को सख्ती अपनाने और इष्टतम स्टॉकिंग घनत्व बनाए रखने से बाइब्रियोसिस को रोका जा सकता है. वहीं नियमित पानी का बदलाव आदान-प्रदान से विब्रियो प्रजातियों के जीवाणुओं को कम करना संभव है. इसके अलावा प्रोबोयोटिक की निश्चित मात्रा से देने से भी विब्रियो प्रजातियों के हानिकारण जीवाणु को काम किया जा सकता है.
नई तकनीक का हो रहा इस्तेमाल
जालीय कृषि में झींगा पालन का बहुत बड़ा योगदान है. पूरी दुनिया में प्रोटीन मांग को पूरा करने में जालीय कृषि का अहम योगदान रहा है. भविष्य में यह मांग और बढ़ाने की उम्मीद की जा रही है. डिमांड को पूरा करने के लिए जलजीव पालन में गहन तकनीक के इस्तेमाल पर भी जोर दिया जा रहा है. ताकि जलीय कृषि का उत्पादन बढ़ सके. खास तौर पर जैव विविधता का नुकसान, पोषक तत्व का प्रदूषण, जलजीवों में रोगों की आशंका आदि को लेकर गहन तकनीक उपयोग से जालीय कृषि में विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
Leave a comment