नई दिल्ली. दुनियाभर में जितना दूध उत्पादन हो रहा है, उसमें सबसे ज्यादा भारत में किया जा रहा है. यानि अपना देश दूध उत्पादन में भारत विश्व में पहले नंबर पर काबिज है. वहीं एक और अच्छी खबर ये सामने आई है कि हर साल दूध का उत्पादन बढ़ाने में कामयाबी मिल रही है. हालांकि दूध और दूध से बने प्रोडक्ट की मांग में भी इजाफा हुआ है. इसमें विदेशों से अच्छी मात्रा में डिमांड हो रही है. दिक्कत यहां ये है कि कैसे दूध उत्पादन बढ़ने की मौजूदा रफ्तार को बरकरार रखा जाए. इस संबंध में अमूल के पूर्व एमडी और इंडियन डेयरी एसोसिएशन के प्रेसिडेंट आरएस सोढ़ी कहते हैं कि आज डेयरी सेक्टर के सामने कुछ चुनौतियां हैं, जिनसे पार पार बहुत जरूरी है.
उनका कहना है कि जो चुनौतियों हैं यदि वक्त रहते उनका हल निकाला लिया जाए तो दूध उत्पा़दन भी बढ़ेगा और बाजार में डिमांड भी बढ़ जाएगी. वहीं प्रोडक्शन के साथ—साथ बाजार की मांग पर भी गौर करने की जरूरत है. ये अच्छी बात है कि बीते 50 साल में डेयरी कारोबार 10 गुना तक बढ़ गया है और इसे बढ़ाने में मदद करने वाले डेयरी से जुड़े तमाम इंजीनियर्स की ये जिम्मेदारी है कि वो कैसे इन मुश्किलों से पार पाते हैं. क्योंकि डेयरी सेक्टर बहुत तेजी से बढ़ने वाले कारोबार में से एक है. वहीं ताजा और प्योर प्रोडक्ट मिलने के चलते ही इसकी विदेशों में भी डिमांड हो रही है. जबकि इसके सामने उत्पादन से लेकर बाजार तक की चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं. कम से कम लागत में इन परेशानियेां से निपटना पड़ेगा. बाजार में मिलने वाले तमाम चीजों में तो ग्राहक महंगाई को बर्दाश्त कर लेता है, लेकिन खाने-पीने की चीजों में महंगाई से कभी रास नहीं आती है.
किसानों को पशुपालन के लिए प्रेरित करना होगा
आरएस सोढ़ी ने कहा कि सबसे बड़ी जरूरी जो चीज है वो है कि किसान को पशुपालन करने के लिए प्रेरित किया जाए. क्योंकि तीन-चार गाय-भैंस का पालन करने वाले किसान को मुनाफा होता ही नहीं है. जबकि दूध की कमाई का एक बड़ा हिस्सा उन्हें पशुओं के चारे में खर्च करना पड़ता है. जबकि बिजली बहुत महंगी होती चली जा रही है. यही वजह है कि किसान का पशुपालन से मोह भंग हो रहा है. उन्हें रोकने की जरूरत है. ताकि किसान पशुपालन से बेहतर नौकरी को न समझे. मसला ये भी है कि पशुपालन अनर्गेनाइज्ड होता है तो दूध उत्पादन की लागत बढ़ जाती है. जबकि दूसरी ओर बाजार की डिमांड बदलती जा रही है. पहले हेल्दी प्रोडक्ट की तलाश की जाती है लेकिन अब छोटे शहरों से नई तरह की डिमांड की जा रही है.
क्या करना होगा
इस मामले में आरएस सोढ़ी कहते हैं कि दूध की लागत इसके उत्पादन को बढ़ाकर ही कम करना संभव होगा. इंटिस्ट को ऐसा फीड तैयार करने पर काम करना होगा जिसे खाकर भैंस का दूध उत्पादन तेजी के साथ बढ़े. फीड भी ज्यादा महंगा न हो. वहीं पानी और बिजली की खपत कम करने काम करना होगा. चारा भी ऐसा तैयार करने की जरूरत है कि इसे खाने के बाद पशु से मीथेन गैस का उत्सार्जन कम हो. वहीं गोबर का इस्तेमाल ऐसा हो जिससे पशुपालक को अच्छे दाम मिल सकें. अच्छी और किफायती ब्रीडिंग टैक्नोलॉजी तैयार करने की जरूरत है.
ग्राहक का भरोसा जीतना होगा
गौरतलब है कि बाजार की बात करें तो देश में सालाना 45 लाख करोड़ रुपये का फूड कारोबार किया जाता है. जबकि ग्राहक चाहते हैं कि उन्हें एनीमल बेस्ड फूड मिले. ताकि उन्हें प्रोटीन और फैट दोनों ही मिल सके. ग्राहक ऐसे प्रोडक्ट की तलाश में रहते हैं जिससे स्वादिष्ट, हैल्दी होने के साथ ही उसके बजट पर भी असर न पड़े. जबकि कस्टमर ब्रांडेड और पैक्ड आइटम पर बहुत जोर देता है. खासतौर से छोटे पैकडी आइटम पर उनका ज्यादा जोर होता है. क्योंकि छोटे शहरों से पैक्ड आइटम की अच्छी खासी डिमांड होती है. हमे ग्राहक का भरोसा जीतना होगा कि वो नकली, सिंथेटिक और केमिकल बेस्ड फूड तो नहीं खा रहा है.
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