नई दिल्ली. मछली पालन में कई बातों का ध्यान रखना होता है. मछलियों के फीड से लेकर उनके तालाब में रहने की व्यवस्था तक. अगर तालाब में रहने की व्यवस्था ठीक न हो तो फिर मछलियों की मौत होने लग जाती है. वहीं इससे फिश फार्मर को बड़ा नुकसान उठाना पड़ जाता है. इसलिए जरूरी है कि मछली पालन में कैसे फायदा उठाया जाए, इसकी जानकारी फिश फार्मर एक्सपर्ट से भी कर लें. वैसे इस आर्टिकल में फिश फार्मिंग को लेकर बड़ी ही बेहतरीन जानकारी आपके के साथ शेयर की जा रही है. पूरा आर्टिकल गौर से पढ़ें.
एक्सपर्ट का कहना है कि कार्प के सभी मछलियों के फीड और अन्य बायोलॉजिकल एक्टिविटी सामान्य होती हैं. इसलिए उनका मैनेजमेंट लगभग एक जैसा ही किया जाता है. यहां 3-4 दिन के स्पॉन को 20-25 दिन तक बढ़ने के लिए छोड़ दिया जाता है. मछली की यह अवस्था काफी नाजुक होती है. क्योंकि मछलियां शुरू के तीन दिन में पित के अवशोषण, यानि डाइजेस्टिव सिस्टम से पोषक तत्वों को खून में ले जाने की प्रक्रिया से गुजरती हैं. इसके बाद मछलियां बाहर के खाने पर निर्भर करती हैं. इसलिए नर्सरी रियरिंग में मछलियों को बाहर से अधिक पोषण वाला फीड दिया जाता है. इसका पालन 0.02-0.1 हेक्टेयर जलक्षेत्र में 1-1.5 मी. गहरे तालाब में किया जा सकता है.
मछली पालने से पहले मैनेजमेंट
जब बात मछली पालने से पहले के मैनेजमेंट की होती तो इसमें जलीय पौधों पर नियंत्रण करना भी एक अहम काम होता है. तालाब के मिट्टी को 7-10 दिनों तक धूप में सुखाने से परभक्षी मछली और जलीय पौधे खत्म हो जाते हैं. वहीं तल में जमे जैविक पदार्थों का बिखराव हो जाता है. नर्सरी तालाब से पानी वाले पौधों को हटाने के लिए सबसे अच्छा तरीका है कि मजदूरों द्वारा हाथ से इसे निकलवा लें. तालाब में जलीय पौधों को 7-10 किलोग्राम / हे0 2-4D के इस्तेमाल से भी खत्म किया जा सकता है.
इसका किया जाता है इस्तेमाल
वहीं तालाब में फाईटो प्लैंकटॉन के ब्लूम की स्थिति में सिमाजिन या डायरॉन 3-5 किलो प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल किया जा सकता है. वहीं जलीय पौधों के नियंत्रण के लिए रसायनिक इस्तेमाल से कभी-कभी अपेक्षाकृत रिजल्ट नहीं हासिल होता है. क्योंकि सबमर्जड़ जलीय पौधों के जड़ मिट्टी के नीचे पाये जाते हैं और जहाँ तक रसायन का प्रभाव नही पहुंच पाता है. मिट्टी को ठीक करने की बात की जाए तो मिट्टी का पीएच अल्प अम्लीय से न्यूट्रल (6.5- 7.0) उत्पादकता के लिए अच्छा माना जाता है. इसमें भखड़ा चूना का घोल बनाकर तालाब में उपर्युक्त मात्रा में प्रयोग किया जाता है.
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